Friday 23 October 2015

बचपन - Childhood, Samay Badalta Hai Roop Apna

बचपन - Childhood


गाड़ी अपने गंतव्य की और सरपट भागी जा रही थी । समय करीब सुबह के नौ बजे थे । डिब्बे में ज्यादा भीड़ नहीं थी लेकिन तक़रीबन भरा हुआ था । मेरे सामने की सीट पर बैठा बच्चा मोबाइल पर द्रुत गति से उंगलियां चला रहा था, शायद मोबाइल पर कोई गेम खेल रहा था ।

मैं सोचने लगा, आज समय कितना बदल गया है । इस बच्चे की उम्र करीब 8 - 9 साल होगी लेकिन दीन दुनिया को भूल कर ये मोबाइल में ऐसे खोया हुआ है जैसे इसके आगे और कुछ भी नहीं है ।
 बचपन - Bachpan, Samay Badalta Hai Roop Apna

जब से नई नई तकनीकें विकसित हुई है बचपन चारदीवारी के बीच सिकुड़ कर रह गया है, बाहरी दुनिया से इनका रिश्ता लगभग ख़त्म सा हो चूका है । सुबह स्कूल बस से स्कूल चले जाते हैं, वापस आकर दुनिया भर का होमवर्क, क्लासेज । इनके पास इतना समय ही नहीं है की बाहर बगीचे में जा के प्रकृति को निहारें । फूलों की खुशबु लें । लहरो की अठखेलियों का लुत्फ़ उठाये । इनकी मनोरंजन की दुनिया कंप्यूटर और मोबाइल तक सिमित हो के रह गयी है।

उस बच्चे को देख कर मुझे मेरा बचपन याद आने लगा । उस वक्त कंप्यूटर मोबाइल नहीं हुआ करते थे । हम क्रिकेट,फुटबॉल के खेल मैदानों में ही खेला करते थे, मोबाइल में नहीं।

सुबह माँ उठा के तैयार करती थी। करीने से बाल संवारती थी। माथे पे प्यार से काला टिका भी लगाती थी। फिर पिताजी के साथ मैं लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ स्कूल जाया करता था । 


बचपन - Bachpan, Samay Badalta Hai Roop Apna

हमारे साथ ही मोहल्ले के और 4-5 बच्चे भी होते थे । भोजनावकाश में हम सब बच्चे साथ बैठकर घर से लाये अपने अपने टिफ़िन खोलकर नाश्ता किया करते थे ।

स्कूल से आकर खाना खाने के बाद थोडा आराम करते थे फिर शाम तक स्कूल में दिया हुआ होम वर्क ख़त्म करके कुछ देर सब बच्चे खेलने के लिए इकठ्ठा होते थे।

शाम का समय खेल कूद का समय ही हुआ करता था । गिल्ली डंडा, सतोलिया, कबड्डी जैसे हमारे खेल होते थे । खेल के खेल और व्यायाम का व्यायाम। कभी कभी किसी बात पर लड़ते झगड़ते भी थे मगर कुछ देर बाद सब भूल भाल के खेलने में मशगूल हो जाया करते थे ।


बचपन - Bachpan, Samay Badalta Hai Roop Apna

मुझे याद है एक बार पकड़म पकड़ाई खेलते वक्त नरेश ने अनजाने में विमल को जोर का धक्का मार दिया था । विमल गिर गया था और उसके माथे पर थोड़ी सी चोट लग गयी । नरेश तुरंत भागकर घर से पानी का लोटा भर लाया था । अपने हाथों से उसने विमल की चोट को धोया, उसे पानी पिलाया और फिर उसके घर जाकर उसके माता पिता के सामने अपनी गलती भी क़ुबूल की । विमल के माता पिता ने भी नरेश को दुलार वाली डांट के साथ क्षमा कर दिया था।

परंतु आज का बचपन खो रहा है प्रतिस्पर्धाओं की दौड़ में । नंबर कम आये तो पीछे रह जायेंगे,  ठीक से नहीं पढ़ पाये तो आगे जमाने के साथ कैसे कदम मिला के चल पाएंगे,  का ख़ौफ़ छोटे से दिमाग में पसरा हुआ है । हम भी अपने बच्चों का शायद ऐसे ही भविष्य के अनदेखे दृश्य दिखा दिखा कर डरा रहे है, आस्चर्य होता है जब छोटे छोटे बच्चों को अभी से ये कहा जाता है की बड़ा हो के तुम्हें डॉक्टर बनना है, इंजीनियर बनना है, विदेश में सेटल होना है।


बचपन - Bachpan, Samay Badalta Hai Roop Apna

जिसे अभी ये भी नहीं पता कि एक मोटर के चलने के पीछे कौनसी शक्ति काम करती है उस से हम हवाई जहाज उड़ाने की बात कर रहे हैं।



जरा सोचिये मित्रों कि आज का बचपन क्या वाकई अपना बचपन जी रहा है?  क्या वो सफ़ेद पंखो वाली परियों से मिलने के बारे में सोच रहा है?  क्या उसके नन्हे से दिमाग में चाचा चौधरी जैसा सुपर दिमाग पाने की लालसा है?,  या अभी से वो आगे आने वाले 14-15 सालों के बाद की बातो के बारे में सोच के खो रहा है, कहीं शुन्य में ।

आपके विचार, सलाह और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी ।

......शिव शर्मा की कलम से.....










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धन्यवाद


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