Thursday 22 October 2015

आत्मविश्वाश - Self Confidence


आत्मविश्वाश - Self Confidence


प्रेम एक मध्यम वर्गीय परिवार का पढ़ा लिखा और संस्कारी लड़का था और किसी कपड़े की कंपनी में नोकरी कर रहा था ।

पिता की असमय मृत्यु ने परिवार की जिम्मेदारी उसके कन्धों पर डाल दी थी । छोटी बहन अभी कॉलेज में अंतिम वर्ष की पढाई कर रही थी ।

पिताजी एक प्राइवेट कंपनी में नोकरी करके परिवार चलाते थे । घर खर्च के बाद कोई नाम मात्र की बचत हो पाती थी, वो भी पिताजी के इलाज में स्वाहा हो चुकी थी । ऊपर से थोडा बहुत कर्जा भी सर पर हो गया था।  (आत्मविश्वाश,  Self Confidence)

प्रेम अक्सर इस चिंता में रहता था कि उसकी वर्तमान कमाई से भविष्य में होने वाले खर्चो की भरपाई होनी मुश्किल है । बहिन की शादी, खुद की शादी। माँ भी पिताजी के जाने के बाद बीमार सी रहने लगी है ।

वैसे तो अपने काम में प्रेम होशियार था लेकिन इन चिंताओं के चलते उसका दिमाग नकारात्मक सोच वाला हो गया था। उसे लगने लगा कि वो कभी कुछ नहीं कर पायेगा।


मष्तिष्क में चलने वाले इन बवंडरों के कारण वो अक्सर गलतियां भी कर दिया करता था । एक बार ऐसी ही एक गलती की वजह से उसके कारण कंपनी को कुछ नुक्सान हुआ और उसे अपनी नोकरी से भी हाथ धोना पड़ गया।  (आत्मविश्वाश,  Self Confidence)

अब तो प्रेम एकदम से टूट गया, उसको चारों और अँधेरा नजर आने लगा । वक्त की मार ने उसे अंदर तक झिंझोड़ दिया था । मन बहलाने के लिए वह अपने एक मित्र के घर चला गया ।

उसका मित्र एक सुलझा हुआ और हमेशा सकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति था । उसने प्रेम को दिलाशा दी और ढाढस बढ़ाते हुए कहा "प्रेम चिंता मत करो, तुम अनुभवी और अपने काम में माहिर हो, कल तुम मेरी ऑफिस आना, अपने बॉस से तुम्हारी मुलाकात करवा दूंगा, हमारी कंपनी में तुम्हारे जैसे एक आदमी की जरुरत भी है, शायद तुम्हारा अनुभव हमारी कंपनी के लिए काम का साबित हो, और हां अगर तुम्हे लगे की बॉस तुम्हें मौका देने की सोच रहे हैं तो अपनी तनख्वाह इतनी बताना जिस से तुम्हारा वर्तमान सुधर सके और भविष्य सुरक्षित हो सके।"  (आत्मविश्वाश,  Self Confidence)

प्रेम अगले दिन अपने मित्र की ऑफिस गया, वहां उसे नोकरी भी मिली और मनचाही तनख्वाह भी। आज प्रेम उसी कंपनी में एक उच्च पद पर कार्यरत है एवं अपने फ्लैट में माँ और अपनी पत्नी के साथ रहता है, बहिन की भी शादी हो गयी, वो अपने ससुराल में खुश है।

मित्रों इस कहानी का तात्पर्य ये है कि परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो, हमें हार नहीं माननी चाहिए । अगर हम अपनी सोच को सकारात्मक रखें तो तूफानों का रुख भी मोड़ सकते हैं । जीवन में उतार चढ़ाव आते रहे है और अक्सर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, अगर हम उनका डटकर मुकाबला करें तो जीत निश्चित ही हमारी होगी ।
(आत्मविश्वाश,  Self Confidence)






मुझे किसी शायर का एक शेर याद आ रहा है जो ऐसी परिस्थितियों में सटीक बैठता है :

"गुजर जायेगा ये दौर भी, जरा इत्मिनान तो रख,
जब ख़ुशी ही न ठहरी तो गम की क्या औकात है"

इसलिए अपना आत्मविश्वास कभी ना छोड़े  और जीवन का आनद लें।


इन्ही विचारों और आपके सुझावों की प्रतीक्षा के साथ आप सबको दशहरे की शुभकामनाएं देते हुए मैं शिव शर्मा आपसे अभी के लिए विदा चाहूंगा । जल्दी ही फिर मुलाकात होगी ।
(आत्मविश्वाश,  Self Confidence)








शिव शर्मा की कलम से...








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