Saturday 14 November 2015

दीवाली के मौसम में - Diwali ke Mausam me


दीवाली के मौसम में - Diwali ke Mausam me


दीपावली चली गयी मगर अभी उसकी उमंग उसका उत्साह ज्यों का त्यों है । भारत में तो अभी और भी कुछ दिनों तक दीपावली की रौनक चेहरों पर खिली रहेगी ।

आज यहां पर भी एक भारतीय द्वारा ही संचालित रेस्त्रां के खुले प्रांगण में दीपावली के उपलक्ष में पार्टी का आयोजन किया गया था ।तक़रीबन 200 भारतीय मेहमान इकठ्ठा हुए होंगे । इसी प्रांगण में 26 जनवरी और 15 अगस्त को ध्वजारोहण भी होता है ।

देश के कोने कोने से आये हिन्दुस्तानियों के हुजूम को देख कर लगा ही नहीं की अभी हम अफ्रीकी देश नाइजीरिया की धरती पर हैं । ऐसा लग रहा था जैसे पूरा भारत यहां उमड़ आया हो ।

शुरूआती नाश्ते में शाकाहारियों के लिए समोसा चाट, भेलपुरी, आलू वड़ा इत्यादि देख कर आमची मुम्बई की याद ताज़ा हो गयी । मांसाहारी खाद्य तो हर जगह एक से ही होते हैं, बस मुर्गों और बकरों की नस्ल का फर्क होता है ।

खूब नाच गाना मस्ती हुयी । बच्चे, बड़े, पुरुष, महिलायें सब नाच गा रहे थे । डी जे पर लुंगी डांस गीत जो बज रहा था, और आल द रजनी फेन्स हैं ही । 4-5 घंटे का वक्त कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला ।




पूरा माहौल भारतमय था, ऐसे में मुझे मेरी वो ग़ज़ल (या कविता) आप सबके साथ शेयर करने की इच्छा हो गयी जो मैंने अभी कुछ दिन पहले लिखी थी । अच्छी लगे तो हौसला आफजाई करें और अगर कुछ त्रुटियाँ नजर आये तो उनसे मुझे अवगत कराएं ताकि भविष्य में उन त्रुटियों को सुधार सकुं । ग़ज़ल का शीर्षक है "आओ दिवाली मनायें" ।

"सारे शिकवे गिले मिटायें, दिवाली के मौसम में,
खुशियां बांटे ख़ुशी मनायें दीवाली के मौसम में,

छोटा, बड़ा, पराया, अपना, भेदभाव भूलाकर सब,
प्रेम से सबको गले लगाएं, दिवाली के मौसम में,

घर की सफाई बहुत जरुरी, मन की भी कुछ कर लेना,
स्नेह प्यार के दीप जलायें, दिवाली के मौसम में,

तेरा मेरा इसका उसका, सब गफलत की बातें है,
इन बातों को चलो भुलाएं, दिवाली के मौसम में,

याद रहे इस रात को दफ्तर, घर में पूजा करनी है,
लक्ष्मी अपने घर ले आएं, दीवाली के मौसम में,

बच्चों के संग आप भी निकलें, आतिशबाजी करने को,
मगर ध्यान से इन्हें चलायें, दीवाली के मौसम में,

लंका फ़तेह कर इस दिन, सिया राम घर आये थे,
हम भी घी के दिए जलायें, दिवाली के मौसम में,

माना की परदेस है ये पर, दिवाली तो अपनी है,
झूमे नाचें मस्ती में गायें, दीवाली के मौसम में,

देश पराया लोग पराये, फिर भी फिक्र नहीं करना,
अपना देश यहीं ले आएं, दिवाली के मौसम में।।"


सचमुच आज ऐसा ही लगा जैसे हम अपना देश यहीं ले आये थे । इसी बहाने बहुत से मित्रों से भी मिलना हो गया और मन भी प्रसन्न हो गया ।

अब आप सब से विदा चाहूंगा । रात काफी हो गयी है, कल काम पर भी जाना है ।

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जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...









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धन्यवाद

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1 comment:

  1. दिनोंदिन अच्छे अच्छे ब्लॉग पढने मिल रहे है. धन्यवाद आपका

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