Wednesday 18 November 2015

लक्ष्य - Lakshya, Aim



लक्ष्य - - Lakshya, Aim




नन्हा सा बबलू कागज की नाव बना रहा था उसके चलते उसने बहुत से कागज़ आड़े तिरछे मोड़ माड़ के अपने आसपास फैला रखे थे । आज स्कूल में क्राफ्ट की क्लास में उनको कागज की नाव बनाना सिखाया गया था । उसके पापा ने कहा था "बबलू, मैं बना देता हुं तुम्हें नाव।" लेकिन बबलू ने कहा "नहीं पापा, मुझे खुद बनानी है, खुद बनाऊंगा तभी सीखूंगा।" पापा ने भी उसकी लगन को देखते हुए कुछ रद्दी कागज उसे दे दिए थे नाव बनाने हेतु ।

आखिर कुछ और काग़जों के बलिदान के बाद बबलू ने नाव बना ही डाली । हां एक बार पापा की मदद जरूर ली कि कौनसे कोने खींचने है, मोड़ कर चोकोर किये हुए कागज़ के । जब नाव बन गयी तो छोटा सा बालक ऐसे खुश हुआ जैसे उसने कोई बहुत बड़ा अविष्कार कर लिया था । खुश क्यों नहीं होगा भला, उसकी मेहनत जो सफल हो गयी थी ।

मेहनत कभी भी ज़ाया नहीं जाती । कोशिश हमेशा कामयाब होती है, बशर्ते अगर उसे बीच राह में ना छोड़ा जाए ।
बड़े बड़े वैज्ञानिक किसी भी नए अविष्कार के लिये सैंकड़ों हजारों प्रयोग करते हैं, और तब तक करते रहते हैं जब तक उन्हें सफलता नहीं मिल जाती । यदि वो बीस तीस प्रयोगों के बाद निराश होकर बैठ जाते तो कहां संभव था चाँद पर पहुंचना ।

मुझे एक कहानी याद आ रही है,कुछ टूटी फूटी सी, कि एक गुरु शिष्य किसी गाँव से गुजर रहे थे तो उन्होंने देखा कि जगह जगह कुछ गड्ढे खुदे हुए थे । कोई दस हाथ, कोई बारह- तेरह हाथ तो कोई पंद्रह हाथ ।

शिष्य ने जिज्ञासावश अपने गुरु से पूछा, "गुरुदेव, यहां पर इतने गड्ढे क्यों खोदे गए हैं? क्या प्रयोजन है इनका?"




तो गुरु ने बताया कि "गाँव वाले पानी की तलाश में कुँवा खोदने की योजना बना रहे थे । लेकिन जब दस पंद्रह हाथ खोदने के बावजूद भी पानी नजर नहीं आया तो उन्होंने वहां की खुदाई रोक कर दूसरी जगह खोदना शुरू कर दिया । और पांच सात गड्ढे खोदने के बाद भी जब पानी नहीं मिला तो निराश होकर बैठ गए और अपनी कोशिश ही बंद करदी । अगर ये थोडा सोचते और एक ही गड्ढे को थोड़ा और खोदते तो उस जगह उन्हें पानी जरूर मिल जाता ।"

ऐसा ही हम में से बहुत से लोग करते हैं । किसी एक लक्ष्य पर जोर शोर से काम शुरू करते हैं, और कुछ दिन बाद अगर इच्छानुसार परिणाम नहीं मिलता है, तो अपना लक्ष्य ही बदल देते हैं । इतने दिनों तक की गयी मेहनत को दरकिनार करके । बाद में कुछ लोग पछतावा भी करते हैं कि अगर पहले वाले प्रयास में थोड़ी और मेहनत की होती तो उसका परिणाम अवश्य अपने पक्ष में होता ।

बल्ब के आविष्कारक वैज्ञानिक थॉमस एडिसन के बारे में मैंने पढ़ा था कि जब वो बल्ब के ऊपर प्रयोग पर प्रयोग कर रहे थे, और आशानुरूप परिणाम नहीं आ रहा था, तो किसी ने उनसे पूछा की इतने प्रयोग असफल होने पर भी आप और प्रयोग किये जा रहे हैं, निराश नहीं हुए? थॉमस एडिसन ने जवाब दिया "इन असफल प्रयोगों से ही तो मैंने ये सिखा है कि ये वो प्रयोग है जिनसे बल्ब नहीं बनाया जा सकता ।"

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि घर पर ही पढाई करने वाले और हजारों आविष्कारों के जन्मदाता एडिसन ने बल्ब के सफल आविष्कार हेतु करीब दस हजार प्रयोग किये थे । आज उनकी उसी मेहनत का नतीजा है की पूरी दुनिया जगमगा रही है ।

दोस्तों, कहते हैं ना कि मेहनत का फल मीठा होता है, जरुरत है तो सिर्फ इतनी की हम एक स्पष्ट लक्ष्य लेकर अपनी पूरी मेहनत और लगन से उस लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करें, खुद पर विश्वाश रखें तो यकीन मानिए अंततः सफलता जरूर मिलेगी ।

सफल लोगों के बारे में पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि उन्होंने बहुत सी असफलताओं, सैंकड़ों  नाकामयाबियों के बावजूद भी अपना धैर्य नहीं खोया था तथा निरंतर अपने प्रयासों में लगे रहे थे अपने लक्ष्य पर नजरें टिकाये ।

सुप्रसिद्ध कवी श्री हरिवंशराय बच्चन जी की कविता में भी उन्होंने एक चींटी की कोशिश का खूबसूरत वर्णन किया है । कैसे वो एक दाने को लेकर दीवार पर चढ़ती है, गिरती है, फिर चढ़ती है और आखिर वो दीवार चढ़ने में सफल हो ही जाती है । हम तो फिर मनुष्य हैं । दो स्वतन्त्र हाथ और मस्तिष्क के मालिक ।

इसलिए कभी अगर असफल भी हो जायें तो हार ना मानें, डटे रहें । मन दृढ रखें और ठान लें कि चाहे जितनी मुश्किलें आये, मुझे अपनी मंजिल को पाना है । याद रखें कोई भी हार अंतिम हार नहीं होती, वो तो शुरुआत होती है जीत की । इसी तरह कोई भी असफलता सफलता का पूर्णविराम नहीं बल्कि जीवन के एक नए अध्याय का शुभारम्भ होती है ।

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जय हिन्द

....शिव शर्मा की कलम से....







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