Wednesday 30 December 2015

Ek Chithi Pyar Bhari - एक चिट्ठी प्यार भरी



एक चिट्ठी प्यार भरी



खिड़की के पास बैठा महेश बार बार अपने हाथ में पकड़े कागज को देख रहा था । तभी उसकी पत्नी चाय का कप लिए आ गयी । महेश की आँखों में आंसू थे जिनको वो बार बार छुपाने का प्रयास कर रहा था । लेकिन अपनी पत्नी सुनीता से नहीं छुपा सका ।

"क्या हुआ जी, किसकी चिट्ठी है ? मैं भी तो देखूं ।" पत्नी ने नाम जानने के लिए टेबल पर रखा खुला लिफाफा हाथ में लिया परंतु उस पर भेजनेवाले का नाम पता था ही नहीं ।

"क्या बात है जी, सब ठीक तो है ना?" महेश को जवाब ना देते देख उसकी जिज्ञासा और बढ़ गयी । थोड़ी चिंतित भी हो गयी । जवाब में महेश ने वो चिट्ठी उसे थमा दी और अनमना सा चाय के घूँट भरने लगा ।

सुनीता ने देखा, वो पत्र उसकी ननद राधा का था जो महेश से करीब दस वर्ष छोटी थी और जब महेश और वो कलकत्ता आये थे तब ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ती थी । अब तो बारहवीं में हो गयी होगी ।

साल भर पहले किसी बात पर पिता पुत्र में बहस हो गयी थी और बात इतनी बढ़ी की महेश अपनी पत्नी को लेकर कलकत्ता चला आया था और अपने एक मित्र के साथ छोटा सा काम शुरू कर दिया था । चिट्ठी पढ़ते पढ़ते सुनीता की भी आँखे भी भर आई ।

"सुनीता, गाँव चलने की तैयारी करो । मैं स्टेशन जा के टिकट आरक्षित करवा के आता हुं । हम कल परसों ही गाँव चलेंगे । मैंने क्रोध में आ के बहुत बड़ी गलती करदी थी, उसे सुधारेंगे ।"

"ठीक है जी" सुनीता ने इतना ही कहा । महेश कपड़े बदल कर स्टेशन के लिए निकल गया ।

उस वक्त आज की तरह इंटरनेट और फ़ोन का साधन नहीं था कि घर बैठे दो चार बटन दबाये और टिकट हाथ में । आरक्षित टिकट पानी हो तो स्टेशन ही जाना पड़ता था ।

रास्ते में महेश चिट्ठी के बारे में ही सोचता जा रहा था । राधा ने सही लिखा है, उस पत्र के अक्षर उसकी आँखों के आगे अक्षरशः आने लगे।

प्रिय भैया, प्रणाम ।
पूरा एक वर्ष हो गया आपको कलकत्ता गए हुए । इस बीच ना कोई चिट्ठी न खबर, ऐसी भी क्या नाराजगी । और वो भी अपने जन्मदाताओं से ।

आपकी और पिताजी की किस बात को लेकर अनबन हुयी मैं नहीं जानती । लेकिन इन सबमें माँ का और मेरा क्या कसूर जो आपने हमें भी बिसरा दिया । अपनी लाड़ली बहन को भी भूल गए ।



आप कहा करते थे ना कि जब तू ससुराल चली जायेगी मेरा तो बिलकुल भी मन नहीं लगेगा । मैं रोज तुमसे मिलने आऊंगा ।

लेकिन अभी तो मैं ससुराल भी नहीं गयी, फिर भी आप से मिले एक साल हो गया । पता नहीं आपका मन बहन के बिना कैसे लग रहा है । मैंने तो आपको राखी भी भेजी थी पर आपका कोई जवाब नहीं आया ।

पिताजी भी टूट से गए हैं । दुकान पर कम और घर पर ज्यादा रहते हैं इस वजह से दुकान का काम भी चौपट हो रहा है ।

माँ अक्सर रोती रहती है, आपके बारे में पिताजी से पूछती रहती है । पिताजी भी भीगी आँखों से कहते हैं कि वो हमें अब भूल गया है ।

तो क्या भैया आप सच में हमें भूल गए हो । क्या आप भूल गए हो कि पिताजी के साथ साईकिल पर स्कूल जाया करते थे । माँ बताती है की एक दिन तो पिताजी के पैर में चोट लगी थी फिर भी आपने साईकिल पर जाने की हठ की थी और दर्द के बावजूद पिताजी आपको साईकिल पर ले के गए थे........ ।

"स्टेशन आ गया बाबूजी" रिक्शा वाले की आवाज से महेश की तन्द्रा टूटी ।

उसको किराया चुकाकर महेश स्टेशन परिसर में घुसा । संयोग से वहीँ उसकी मुलाकात उसके एक परिचित विनोद से हो गयी ।





विनोद अपनी और अपनी पत्नी की टिकट रद्द करवाने आया था जो अगले दिन की ही थी । महेश ने कारण पूछा तो उसने बताया की कल अचानक उसकी पत्नी की तबियत ख़राब हो गयी थी और उसे हस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा ।

"ओह" महेश ने अफ़सोस जताया और पूछा, " अब कैसी है उनकी तबियत?"

"अभी वो ठीक है लेकिन डॉक्टर ने लंबी यात्रा करने से मना किया है । तुम कैसे स्टेशन आये हो आज" विनोद ने जवाब के साथ साथ सवाल भी कर दिया ।

"मैं गांव की टिकट बनवाने आया हुं, देखते हैं कल परसों की मिल जाए तो"

"अरे यार, बनवाने की क्या जरुरत है, मेरी टिकट पर तुम चले जाओ विनोद और मधु बनकर । अपनी उम्र में भी तो कोई फर्क नहीं है । ये टिकटें तुम्हारे काम आ जायेगी और मुझे मेरे पुरे पैसे मिल जायेंगे ।" विनोद ने हंसकर कहा ।

(उस समय गाड़ियों में टिकटों की इतनी जाँच पड़ताल भी नहीं होती थी जितनी अब होती है ।)

महेश को भी बात जंच गयी । और वो विनोद की टिकट लेकर घर आ गया ।

"कल की टिकट मिल गयी है सुनीता, रात की गाड़ी है, मैं कल दुकान के पार्टनर से हिसाब किताब करके शाम तक वापस आ जाऊंगा ।" बताते हुए वो अधलेटी अवस्था में कुर्सी पर बैठ गया । आँखे मूंदते ही मस्तिष्क में फिर से राधा के लिखे पत्र के अक्षर मंडराने लगे ।

......क्या आप ये भी भूल गए कि आपकी तबियत खराब होने पर माँ ने लगातार दो रातें आँखों में ही काट दी थी, पलक तक नहीं झपकाई थी जब तक आपका बुखार नहीं उतरा था । हो सकता है आपको ये याद हो की मेरा स्कूल का होमवर्क ज्यादा होने पर आप कर दिया करते थे । कितना प्रेम था आपको मुझसे । ये भी आप भूल गए?

खैर, मैंने ये चिट्ठी सिर्फ आपको ये बताने के लिए लिखी है कि पिताजी की तबियत दिन ब दिन ख़राब होती जा रही है । वे आपके घर छोड़ के जाने के पीछे अपने आप को कसूरवार समझ रहे हैं । इसी ग्लानि में वे घुट घुट कर वे आधे हो गए है और लगता है उम्र से पहले ही आपकी याद में जल्दी ही बिस्तर पकड़ लेंगे । अब जब वे अपनी अंतिम सांसे गिन रहे होंगे तब तो आप आओगे ना ? बताना भैया ।

आपकी बहन (या गुड़िया) राधा ।

" मैं आ रहा हुं मेरी बहना । पापा को और घुटने नहीं दुंगा । मैं आ रहा हुं गुड़िया, जल्दी ही आ रहा हुं ।" महेश नींद में भी बड़बड़ा रहा था और सुनीता के अधरों पर एक सुकून भरी मुस्कान थी ।


Click here to read "चिट्ठी आई है -  Chitthi aayi hai" by Sri Shiv Sharma


....शिव शर्मा की कलम से....







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Sunday 27 December 2015

स्वागतम् नववर्ष - Welcome New Year

स्वागतम् नववर्ष - Welcome New Year

बस 4 दिन और, और शुरुआत एक नए साल की । देखते देखते 365 दिन गुजर गए । युं लगता है जैसे अभी कुछ दिन पहले ही तो हम एक दूसरे को नव वर्ष की शुभकामनायें दे रहे थे ।

वक्त थमता नहीं है । दिन हफ़्तों में, हफ्ते महीनों में और महीने साल में बदलते जाते हैं । पुराना बीत जाता है और नया साल आ जाता है ।

लेकिन बदलता क्या है ? सिर्फ तारीख ? या कुछ और भी । जी हां, गुजरते वक्त के साथ और भी बहुत कुछ बदल जाता है । बीता साल बहुत सी खट्टी मीठी यादें छोड़ जाता है । बहुत से पलों को तो हम भूल भाल भी जाते हैं ।

लेकिन इस बार आप एक काम कीजिये, इन तीन चार दिनों में जब भी फुरसत मिले, जाने वाले साल की यादों को ताजा कीजिये ।ख़ुशी के पलों को याद करके फिर एक बार आनंदित हो जाइए । आपने कुछ सपनों के ताने बाने बुने होंगे, उनको इस आने वाले साल में एक दिशा देने का प्रयास कीजिये ।

कुछ गलतियां भी हुयी होंगी, कुछ यार रूठे होंगे । कुछ नए मित्र भी बने होंगे । किसी के आँगन में नन्ही किलकारियाँ गूंजी होगी । कुछ सुखद तो कुछ दुखद घड़ियां भी आई होंगी ।

ये ही तो जीवन है । जीवन के इन हसीन, मधुर पलों को सहेजकर रखें । रूठे हुओं को मनालें ताकि खुशियां दुगुनी हो जाए ।



जाने वाले साल को विदा करते हुए आइये आने वाले नव वर्ष का स्वागत करें ।

"अलविदा से पहले
तेरा शुक्रिया ए जाने वाले साल

अच्छा रहा
तेरे साथ का सफ़र
तुमने ही तो दिया
मुझे मेरा हमसफ़र

कितने नए मित्र दिए
ये अलग बात है,
कुछेक विचित्र दिए

मेरे साथ चलते चलते
मेरे सुख दुःख के भागीदार बने
हम भी तो कच्चे से
थोड़े होशियार बने


कुछ मिले,
कुछ छोड़ गए
कोई दिल में बसे
कोई इसे तोड़ गए

तेरे सोहबत में ही
मैंने चखा तरक्की का स्वाद
ए जाने वाले साल
तू सदा रहेगा याद

कुल मिलाकर
तुमने लिया कम,
दिया ज्यादा
ए जाने वाले साल,
तुम्हे अलविदा"

"स्वागत स्वागत
नव वर्ष तेरा स्वागत

तुम बस मेरा
इतना सा कहा करना
आगाज़ से अंजाम तक
जरा सबका ख्याल रखना

अपनों को अपनों से लगाव रहे
आसमां छु लें, पर जमीं पर पाँव रहे
जरा इस अर्जी पर भी विचार करना
सबके सपनों को तू साकार करना

ना अतिवृष्टि ना सुखा हो
कोई प्यासा ना भूखा हो
क्रन्दन ना हाहाकार हो
न अबलाओं पर अत्याचार हो

आ चल तेरी छाँव में
जिंदगियों को संवारा जाए
खुदा करे तेरे सफ़र में कोई मासूम
बेमौत ना मारा जाये"


इन्हीं शब्दों और नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाओ के साथ आज अलविदा दोस्तों, कल फिर मिल रहे हैं ना ।

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जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...

Saturday 26 December 2015

दर्द ए जुदाई । Dard-e-Judaai


 दर्द ए जुदाई । Dard-e-Judaai, The Pain of Separation


हम सब साथी बैठे गपशप, हंसी मजाक कर रहे थे । हमारा एक साथी अगले दिन भारत जाने वाला था, उसका कॉन्ट्रैक्ट पूरा हो चूका था तो 2 साल बाद 2 महीने की छुट्टियों पर जा रहा था । इसलिए उसके घर पर सबने मिलकर एक छोटी सी विदाई पार्टी का आयोजन भी किया था ।

पुरे दो वर्षों बाद अपने वतन की मिट्टी, अपने परिवार, शुभचिंतकों और अपने दोस्तों से मिलने का उत्साह उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था ।

हम सब भी उसकी ख़ुशी में खुश थे, क्योंकि जा भले ही वो रहा था, मगर कल्पना में उसके साथ साथ हम भी मुम्बई एअरपोर्ट देख रहे थे, वहां से ट्रेन और बस यात्रा कर रहे थे ।

किसी शायर ने भी क्या खूब कहा है कि :
" जरूरी तो नही है कि तुझे आँखों से ही देखूँ,
तेरी याद का आना भी तेरे दीदार से कम नही।"



ईश्वर की कितनी सूंदर देन है मनुष्य को ये कल्पनायें । कल्पनाओं की उड़ान हमें पल भर में कहां से कहां ले जाती है । सोच सोच में हम पल भर में मानसिक रूप से अपने गाँव अपने घर पहुँच जाते हैं और इन्ही कल्पनाओं के माध्यम से हम देखने लगते हैं वो दृश्य जो हमारे दिलोदिमाग में बसे हैं । देश में अभी भोर हो गई होगी, दादी भगवान की आरती कर रही होगी, माँ गायों को चारा खिला रही होगी । भैया दफ्तर और बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे होंगे, इत्यादि इत्यादि ।

"भैया पासपोर्ट और टिकट संभाल कर रख लिए हैं ना ।" तभी किसी ने उस से पूछा ।

"हां, उनके बगैर तो हमें एअरपोर्ट में ही नहीं घुसने देंगे ।" उसने हंस कर जवाब दिया तो हम भी हंस पड़े ।

"चलो अब सब लोग खाना खाते हैं । नहीं तो ये ठंडा हो जाएगा । सुबह इन लोगों को जल्दी भी निकलना है ।" हमारे एक मित्र ने सुझाव दिया ।

"कल तुम चले जाओगे तो दो महीने सब सूना सूना सा लगेगा । गुड़िया तो बहुत याद आएगी ।"

"हां यार, ऑफिस में भी एक अधूरापन सा लगेगा"

"ध्यान से जाना, दो महीने में ही गुजरे दो सालों को भी जी के आना वहां पर" इस तरह की बातों के बीच हमने खाना खाया ।

फिर जब अपने अपने घरों को जाने का समय हुआ तो उसको गले मिलकर शुभयात्रा की शुभकामनाएं देते वक्त आँखें नम हो गई थी ।

सच है, किसी से भी जुदा होना तकलीफदेह होता है । वो मित्र दो महीने के लिए हमसे बिछड़ कर जा रहा था और हम उदास थे । लेकिन वो जिनसे मिलने जा रहा है वे तो पिछले दो वर्षों से उस से दूर थे । फिर जब वापस वो दो महीने बाद उनको छोड़कर, उनसे जुदा होकर आएगा तो उनकी पीर की कल्पना ही की जा सकती है ।



दर्द तो होता ही है जब कोई अपना अपनों से जुदा होता है, फिर रिश्ता चाहे खून का हो या दिलों का । हम किसी कारणवश अपना मोहल्ला भी बदलते हैं तो पिछले मोहल्लेवासियों से बिछुड़ने का दर्द दिल को सताता है ।

जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने घर, अपने परिवार, अपने इष्ट मित्रों से जुदा हो कर, इन सबको छोड़कर कहीं अन्यत्र जाना सबको पीड़ादायक लगता है । इस दर्द से आप भी गुजरे ही होंगे । लेकिन जुदाई का ये दर्द "कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है" वाली कहावत याद करके सब कोई सह जाते हैं ।

इन सबके साथ किसी को अपने वतन से भी जुदा होना पड़े तो टीस और बढ़ जाती है । मुझे हमेशा की तरह इसी बात पर किसी अनजान शायर का एक शेर याद आ गया ।

"किस्मत पर एतबार किसको है
मिल जाये खुशी तो इंकार किसको है
जिंदगी की कुछ मजबूरियां है दोस्त
वरना जुदाई से प्यार किसको है ।"

सही भी है । जुदा कौन किससे होना चाहता है । ये तो वक्त और हालात मजबूर कर देते हैं एक दूजे से बिछुड़ने को । वर्ना तो इंसान हमेशा ये ही चाह रखता है कि वो सदैव अपने देश में अपने घर परिवार, अपने लोगों के साथ ही रहे ।

किसी से जुदाई है तो किसी से मिलन भी है । बेटा, पति या भाई परदेश जा रहा है, कुछ अच्छी कमाई होगी तो आने वाला समय अच्छा हो जायेगा । कुछ सपने पुरे हो जायेंगे । जैसी बातेँ दिलों को सूकून दे देती है तो जुदाई का दर्द कुछ कम हो जाता है ।

खुदा किसी को किसी से जुदा न करे, आपसे भी जुदा होने का मेरा मन तो नहीं
कर रहा है । लेकिन आज की जुदाई कल के मिलन का सबब भी तो है । इसलिए आज विदा मित्रों । कल फिर मिलेंगे ।

Click here to read "कलियुगी रावण - The Modern Raavan" by Sri Shiv Sharma

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जय हिन्द

....शिव शर्मा की कलम से....

Wednesday 23 December 2015

दिल की बस्ती - Dil ki Basti

दिल की बस्ती - Dil ki Basti


व्यस्तता की वजह से कल कुछ नहीं लिख पाया था । आज भी दफ्तर से घर आते आते समय काफी हो गया था, इसलिए सोच तो रहा था कि कोई लघु कथा लिख दुं । या कोई दो चार छोटी छोटी शायरियां लिख लुं । ताकि लेखन का लेखन और आप सबसे मुलाकात, दोनों काम हो जाए ।

मन बनाया कुछ शायरी जैसा लिखने को लेकिन जब लिखना शुरू किया तो बस लिखता चला गया और शायरी ने एक ग़ज़ल जैसा रूप ले लिया ।

अब आपको ये कितनी पसंद आएगी ये तो मैं नहीं जानता । परंतु मुझे पता नहीं क्यूं ऐसा लग रहा है कि आप इसे जरूर पसंद करेंगे । अपने विचार अवश्य बताएं ।



     
         "दिल की बस्ती"
          -------------------

बनती हुई बात, बिगड़ने ना देना
नफरतों को दिल, जकड़ने ना देना
बड़ी मुश्किल से बसती है मुद्दतों बाद
दिल की बस्ती, उजड़ने ना देना

पिरो के रखे हैं जो यादों के धागे से
मुहब्बत के मोती, बिखरने ना देना
जुदाई के पलों में लिखे थे हर रोज
चूहों को वो ख़त, कुतरने ना देना

वो लोग जो घोलते हैं रिश्तों में जहर
उन्हें पास अपने, फटकने ना देना
गफलत में आ के भूले से भी कभी
प्रेम का शीशा, चटकने ना देना

कभी घिर जाओ मुश्किलों में अगर
दीवार हौसले की, ढहकने ना देना
कामयाबी के नशे में हो के मगरूर
क़दमों को अपने, बहकने ना देना

तनहाई में देगा सूकून की थपकी
यादों का मौसम, गुजरने ना देना
नासूर बन जो दे टीस जिगर को
ऐसे जख्मों को, उभरने ना देना

भरनी है उड़ान ऊँचे आसमानों पर
सपनों के पंख, सिकुड़ने ना देना
जिंदगी है इम्तेहां लेती ही रहती है
घबराहट का डर, पनपने ना देना

चलते रहो तो मिलेगी मंजिले भी
बढ़ते क़दमों को शिव ठहरने ना देना
छोटी सी जिंदगी है जी भर के जियो
मायूसियों के पैर पसरने ना देना ।।

             **********


दिल के जज्बातों को शब्दों का रूप दे कर कागज़ पे उतारा है दोस्तों । अब मुकदमा आपकी अदालत में है । कैद या रिहाई, जो देंगे कबूल है ।

Click here to read "चलो गीत लिखें - Chalo Geet Likhe" by Sri Shiv Sharma

Click here to read "ये भी कोई बात हुई" by Sri Shiv Sharma

Click here to read "नाम अगर रख दें कुछ भी - What is in a name" by Sri Pradeep Mane


कल फिर मुलाकात होगी ।

जय हिन्द

*शिव शर्मा की कलम से*








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धन्यवाद

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Monday 21 December 2015

Janam Janam ka Saath - जनम जनम का साथ



जनम जनम का साथ



एक मित्र ने आज व्हाट्सएप्प पर एक वीडियो भेजा । मशहूर हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा जी का । वही चार लाइनों वाले सुरेन्द्र शर्मा । बता रहे थे कि हमारे देश में तलाक के मामले विदेशों की बजाय बहुत कम होते हैं । हास्य कवि है तो अपने अंदाज में ही उन्होंने इसके कारण भी बताये ।

बहुत से कवि या हास्य कलाकार पति पत्नी के रिश्ते पर बहुत से हास्य व्यंग्य के रंग बिखेरते रहते हैं । अक्सर हंसी मजाक के माहौल में पति पत्नी के चुटकुले भी शामिल रहते हैं । और हो भी क्यों ना, आखिर ये रिश्ता है ही इतना निराला । दुनिया में ये ही तो एक रिश्ता है जो प्रेम, समर्पण और विश्वास की बुनियाद पर खड़ा होता है ।

इस बुनियाद को मजबूत करते हैं हमारे संस्कार और हमारे देश की संस्कृति । इसीलिए तो पति या पत्नी को जीवनसाथी का नाम दिया जाता है । पुरे जीवन का साथी, जीवन साथी । बहुत सी मन की बातें होती है जो हम अपने अन्य परिवार जनों के साथ नहीं कर सकते, वो अपने जीवनसाथी के साथ बाँट कर मन के कई बोझ हलके कर लेते हैं ।


समय के साथ भाई, बहन, बच्चे सब अपनी अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त हो जाते हैं, मगर अंत तक साथ निभाता है जीवनसाथी । शर्त इतनी सी है की इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी से निभाया जाए ।

पति पत्नी का ये रिश्ता बहुत ही ख़ास होता है । इस रिश्ते की मजबूती तय करती है आपके आगे आने वाले जीवन के पलों को । जितना आपसी सहयोग, समर्पण और एक दूजे में विश्वास होगा, जीवन उतना ही मधुर होगा । और जहां ये चीजें नजरअंदाज कर दी जायेगी, कलह और क्लेश होंगे, जीवन में कड़वाहट भर जायेगी ।

आपने भी देखे होंगे बहुत से ऐसे जोड़े जो हर पल खुश नजर आते हैं । जिनके घरों से कभी बर्तन फेंके जाने की आवाजें नहीं आती । और बेलन बाकायदा रोटी बेलने के ही काम आती है ।



वे लोग शायद विवाह बंधन के इन सूत्रों का बखूबी इस्तेमाल करते होंगे । एक दूजे के लिए सम्मान, उनकी भावनाओं का आदर और सुख दुःख की हर बात को आपस में बाँटने का काम । अपने जीवनसाथी की हर छोटी छोटी जरुरत का ख़याल । ये ही तो है एक मधुर जीवन का राज ।


लेकिन कई बार होता ये है कि विवाह से पहले जो दीवाने हुआ करते थे, साथ जीने मरने की कसमें खाते थे । विवाहोपरांत समय के कुछ अंतराल के बाद एक दूसरे के प्रति लापरवाह होते जाते हैं । बात बात पर नोकझोंक, झगड़े शुरू हो जाते हैं और कई दफा नोबत तलाक तक आ जाती है ।

जनम जनम के इस रिश्ते को निभाने के लिए जरुरी है की इसमें इतनी मिठास घोल दी जाए कि कड़वाहट के लिए कहीं जगह ही ना बचे ।

अगर जीवनसाथी ने काबिलेतारीफ कोई काम किया है तो तारीफ़ करने में कंजूसी कतई ना करें बल्कि कभी कभी युं ही तारीफ़ कर दिया करें । रिश्ते की कड़ी में वेल्डिंग का काम करेगी ।

खाली समय अधिकतर साथ बिताने का प्रयास करें और जीवन के मधुरतम बिताये पलों की यादें ताजा करें । अपने साथी की जिंदगी से जुड़े ख़ास दिन, ख़ास तारीखें याद रखें और वो दिन आने पर उसे उत्सव की तरह मनायें ।

किसी कारणवश अगर आप एक दूसरे से दूर हैं तो जब मिलें तब एक साथ सारे ख़ास दिनों को याद करके जश्न मनालें ।

जिस दिन ये रिश्ता पति पत्नी के रिश्ते से मित्रता के रिश्ते में बदल जाए तब देखिएगा, जीवन का ये सफ़र कितना सुहाना हो जायेगा । और ये गीत होठों पे आ जायेगा ।

"जनम जनम का साथ है हमारा तुम्हारा,
अगर न मिलते इस जीवन में लेते जनम दुबारा"


..........आज रोज से हटकर कुछ लिखने का प्रयास किया है दोस्तों । आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करूँगा । .....


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जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...




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Sunday 20 December 2015

Sardi Aayi Sardi Aayi


सर्दी आई सर्दी आई - The winter has come

नमस्कार दोस्तों । क्षमा चाहूंगा, दो तीन दिन से कुछ लिख नहीं पाया । पता नहीं क्यों, कुछ सूझ ही नहीं रहा है, अन्यथा तो विचारों का समंदर दिमाग में उथल पुथल मचाता ही रहता है ।

आज फिर रहा नहीं गया । आप से बतियाने का दिल हुआ तो बैठ गया लिखने । हालांकि तन थका थका सा है, पर मन आप सबसे बात करने को मचल रहा है ।

और हां, सर्दी अपने पूर्ण यौवन पर है, अपने आप को इससे बचाके रखना । बहुत बेवफा है ये जालिम । आहें ठंडी ठंडी भरवाती है मगर मौका पाते ही हमला कर देती है । एक बार अगर इसने पकड़ लिया तो फिर, तौबा तौबा । बेचारी नाक की तो शामत आ जाती है । नित्य दो तीन रुमाल "नाक के आंसू" रोते हैं ।

वैसे सर्दी का मौसम स्वास्थ्य के लिए है बेहद अच्छा । जो भी खाओ हजम हो जाता है । हो सकता है कई मित्र अभी गोंद के लड्डूओं का लुत्फ़ उठा रहे होंगे । बड़े मजेदार और स्वादिष्ट होते हैं ये लड्डू ।

राजस्थान में तो सर्दियों का मौसम और गोंद के लड्डुओं का जन्मजात का रिश्ता है । सुबह का नाश्ता प्रायः ये लड्डू ही होते हैं । देशी घी में भुने हुए गोंद के बने लड्डू तुरंत उर्जादायक और सर्दी से बचाने वाले जो होते हैं ।

"मौका भी है और दस्तूर भी" वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए मैं भी सर्दी के इसी मौसम पर एक साधारण सी कविता या तुकबंदी करने का प्रयास कर रहा हुं । शायद आपको पसंद आये ।

शाम हुई सब दुबके घरों में
सुनी हो गई गलियां सारी
पेड़ ठंड से ठिठुर रहे हैं
सिकुड़ गई है कलियां सारी
हर कोई ढूंढ रहे बक्सों में
कहां है कम्बल, कहां रजाई
सर्दी आई सर्दी आई



कोट स्वेटर जैकेट मफलर
सब के सब इतराये हैं
आखिर कितने अरसे बाद वे
कैद से बाहर आये हैं
लालाजी के सर चढ़ देखो
ऊनी टोपी भी इतराई
सर्दी आई सर्दी आई

कोहरे का आलम मत पूछो
उसकी अकड़ निराली है
दुश्मन बना धुप का जालिम
नम्बर एक मवाली है
कोढ़ में खाज बनी कुदरत
जो इस कोहरे में हवा चलाई
सर्दी आई सर्दी आई



हिम्मतवाला ताकतवाला
वो, जो रोज नहाता है
चौड़ी छाती कर औरों को
सरल उपाय सुझाता है
रोज नहाना आफत लगता
हाथ पैर ही धो ले भाई
सर्दी आई सर्दी आई ।।

अब आपसे इजाज़त चाहूंगा । कल फिर मिलते हैं ।

Click here to read "चलो गीत लिखें - Chalo Geet Likhe" by Sri Shiv Sharma

http://hindigeneralblogs.blogspot.in/2015/12/chalo-geet-likhe.html
जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...

Thursday 17 December 2015

आँख का तारा - Aankh ka tara

आँख का तारा - Aankh ka tara, the Star


दसवीं कक्षा में पढ़ने वाला गौतम बहुत ही शांत स्वभाव का था । शरीर थोड़ा भारी होने की वजह से साथी बच्चे अक्सर उसे मोटू मोटू कहकर चिढ़ाते रहते थे परंतु गौतम कभी बुरा नहीं मानता था ।

साल भर पहले तक तो ठीक ठाक था, लेकिन पता नहीं क्यूं अचानक से उसका वजन बढ़ने लगा था । माँ कहती, मेरे लाल को खाया पिया गुण कर रहा है । तो पापा हंसकर कहते थे, "कुछ ज्यादा ही कर रहा है, आधा ही खिलाया पिलाया करो ।"

वैसे वो बेडौल नहीं दिखता था परंतु उम्र के लिहाज से कुछ अतिरिक्त वजनी ही था । उस वजह से वो ज्यादा भाग दौड़ वाले खेल भी नहीं खेल पाता और अक्सर इसी बात का उसके दोस्त मजाक उड़ाते रहते थे ।

"चल गौतम, सौ मीटर की दौड़ लगाएं ।" नीरव ने आ के उसे छेड़ा ।

"नहीं यार नीरव, तुझे दिख रहा है ना मेरा 50 किलो बोरे जैसा बदन । इसे लेकर क्या मैं भाग सकता हुं ।" गौतम ने हंस कर बात टाल दी ।

ये कोई पहली बार नहीं हुआ था । प्रायः कभी नीरव, कभी गोविन्द तो कभी युनुस आदि उसकी मजाक बनाते ही रहते थे । और गौतम सबको हंसकर जवाब दे देता था ।


आज मौसम का मिजाज कुछ आक्रामक था । आसमान से सूरज आग उगल रहा था । तापमान का मूड तो यूं लग रहा था जैसे धरती का सारा पानी सोख लेगा ।

ग्यारह बज रहे थे । टन टन टनन टनन..... छुट्टी की घंटी बजी । एक शोर के साथ विद्यार्थी भाग भाग कर बाहर आने लगे । कुछ ही देर में सभी अपने अपने घरों के रास्ते पर थे ।

नीरव और गौतम एक ही मुहल्ले में रहते थे इसलिए साथ ही आते जाते थे । स्कूल से उनके घर का रास्ता लगभग एक किलोमीटर का था ।

दोनों दोस्त भीषण गर्मी के बारे में ही बात करते हुए घर की तरफ जा रहे थे । बाकी बच्चे उनसे काफी दूर हो चुके थे । कुछ अलग अलग गलियों में गुम हो चुके थे ।

चलते चलते वे दोनों रेत के उस टीले तक आ चुके थे जो उनके स्कूल और घर के बीच में पड़ता था । अभी आधा रास्ता भी तय नहीं हुआ था और दोनों बुरी तरह थक चुके थे । पसीने से लथपथ ।

अचानक शायद गर्मी की वजह से पता नहीं नीरव को क्या हुआ, बस्ता हाथ से गिर गया और वो गिरने ही वाला था की गौतम ने उसे थाम लिया ।

"नीरव..... नीरव..." गौतम ने उसे आवाज लगाई, लेकिन वो शायद अपनी चेतना खो चूका था । गौतम ने मदद के लिए इधर उधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया । इस झुलसाती धुप में कौन घर से बाहर निकलता है । अन्य साथी भी काफी दूर जा चुके थे ।

एक बार तो वो घबरा ही गया, फिर पता नहीं कहां से उसमें इतनी ऊर्जा आ गयी कि झटपट नीरव को उसने अपने कन्धों पे उठाया । बस्तों को दूसरे हाथ में थामे दौड़ पड़ा घर की तरफ, जो अब ज्यादा दूर नहीं था ।

कुछ देर बाद बुरी तरह हांफता और पसीने से तरबतर वो नीरव के घर पहुँच गया । नीरव के माता पिता एक दफा घबरा से गए । फिर उन्होंने नीरव को कमरे में बिस्तर पर लिटाया, पंखा चलाया और उसकी मम्मी भी हाथ से पंखा करने लगी । गौतम को भी उन्होंने पंखे के नीचे बैठाया ।

नीरव के मुंह पर पानी के छींटे मारे तो थोड़ी देर में उसने आँखे खोली । तब तक दोनों के पसीने सुख चुके थे । नीरव की मम्मी भागकर पीने का पानी ले आई ।

नीरव के पापा ने उसे बैठाकर पानी पिलाया तो उसके चेहरे पर थोड़ी सी राहत आई । यही हाल गौतम का था । पानी बहुत स्वादिष्ट लग रहा था, प्यास के मारे । तब तक डॉक्टर साहब भी गौतम के पिता के साथ आ गए । नीरव की बहन ने उन दोनों को फ़ोन कर दिया था, संयोग से डॉक्टर साहब किसी को देखने मोहल्ले में ही आये हुए थे ।

डॉक्टर साहब ने नीरव और गौतम दोनों का मुआयना किया, और कहा, "चिंता वाली कोई बात नहीं है, गर्मी ज्यादा है इसलिए थोड़ी लू लग गयी । मैं दवाई लिख देता हुं, 2-3 दिन खानी है । शायद नीरव पानी कम पीता है । इसे कहें खूब पानी पीया करे ।"

फिर वो गौतम की और मुखातिब हो के बोले, "शाबाश गौतम, तुम्हारे जैसे दोस्त सबको मिल जाए तो वो दोस्त तो नसीब वाले होंगे । तुम भी ये दवा 2-3 दिन लेना । वैसे तुम बिलकुल ठीक हो और काफी मजबूत भी ।"

फिर हंसते हुए बोले "रोज थोड़ी कसरत करना चालु करदो कल सुबह से, क्या पता इस गर्मी में कब किसी और दोस्त को कंधे पर लाद कर भागना पड़े ।" फिर उसका कन्धा थपथपाते हुए वहां से निकल गए ।

नीरव के पापा ने गौतम को गले से लगाया और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा । गौतम के पापा तो उसे गर्व भरी नजरों से निहार रहे थे । मानो कह रहे थे "सच में खाया पीया गुण कर गया।" नीरव, उसकी मम्मी और बहन की आँख में आंसू थे ।

अगले दिन नीरव तो स्कूल नहीं जा पाया लेकिन ये खबर वहां तक पहुँच चुकी थी । गोविन्द, युनुस और कक्षा के अन्य साथियों ने गौतम को अपने गले से लगा लिया ।

प्रार्थना के समय जब प्रधानाध्यापक जी ने गौतम को शाबाशी दी तो सब अध्यापकों व विद्यार्थियों ने तालियां बजाकर गौतम का सम्मान किया ।

आज मोटू सबकी आँखों का तारा बन गया था ।

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जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...

Wednesday 16 December 2015

ये कहां आ गए हम - Yeh kahan Aa gaye hum

ये कहां आ गए हम






"अरे राजू, मुरली अखबार दे गया क्या?" अंदर वाले कमरे से दादाजी ने आवाज लगाई । सुबह के साढ़े सात बजे थे ।

"हाँ दादाजी । आइये ।" राजू दादाजी का हाथ पकड़ कर उन्हें कमरे से बाहर धुप में ले आया । सब सर्दी की धुप और अखबार का आनंद लेने लगे ।

अख़बार के अलग अलग पेज सब के हाथ में चले गए । मुख्य पृष्ठ दादाजी के पास, बाकि कुछ पेज राजू के हाथ में थे और कुछ उसके पापा के हाथ में । कुछ देर बाद पेज की अदला बदली हो गयी ।

बाद में वो अखबार पुरे मोहल्ले में घूम आता था । 9 बजे वर्माजी के यहां, 10 बजे मास्टरजी के पास, 11 बजे कहीं और तो 12 बजे कहीं और । अख़बार को पूरा सम्मान मिला करता था और उसकी कीमत भी अच्छी तरह वसूल हो जाती थी ।

एक ही अख़बार ना जाने कितने जने पढ़ लेते थे । टेलीविजन पर गिनती के चैनल आते थे । सब मिल बैठ कर देखते थे ।

पिछले कुछ समय में वक्त ने बहुत तेजी के साथ करवटें बदली और अपने साथ साथ और भी बहुत कुछ बदल दिया । जिसमें क्या क्या पीछे छूट गया हम जान ही नहीं पाये ।

अखबार आज भी आते हैं लेकिन उसमें, जिसे जो पढ़ना है, वो सिर्फ वही पढता है । नोकरी ढूंढते लोग आवश्यकता है वाला पृष्ठ, कुछ वर वधु चाहिए वाला, कई लोग राशिफल में रूचि रखते हैं, तो कुछ ये देखते है कि बाजार में कौनसा नया मोबाइल या कोई अन्य प्रोडक्ट आया है ।

क्योंकि ख़बरें तो टी वी या सोशल मीडिया से मिल ही जाती है, और वो भी ताज़ा ताज़ा, जो अखबारों में तो अगले दिन छपेगी ।

हर हाथ में मोबाइल आ गए । टी वी पर तीन सौ चार सौ चैनल । सबकी अलग अलग पसंद । अब एक टी वी से काम नहीं चलता । घर में कोई धारावाहिक पसंद है तो कोई सिनेमा पसंद । किसी को समाचार देखने हैं । तो किसी को खेल चैनल ।
 वक्त के साथ साथ हम भी तो बदलते चले जा रहें हैं । रूबरू हो के हालचाल जानना लगभग बंद सा हो गया है । सोशल मीडिया पर "कैसे हो दोस्तों" की एक पोस्ट डाली और हो गई इतिश्री ।

प्रतिस्पर्धा के दौर में टेलीविजन चैनल भी क्या क्या परोस रहे हैं, किसी से छुपा नहीं है । शालीनता नाम की चीज तो संग्रहालय में रखने की वस्तु बनती जा रही है ।

प्रगति ने हमें दिया तो काफी कुछ, लेकिन बदले में जो लिया है वो शायद उस से कहीं ज्यादा, बहुत ज्यादा है ।

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जय हिन्द

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आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

धन्यवाद

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Monday 14 December 2015

ये भी कोई बात हुई - Yeh Bhi Koi Baat Hui


ये भी कोई बात हुई


देर से आना जल्दी जाना, ये भी कोई बात हुई ?
रोज बनाना नया बहाना, ये भी कोई बात हुई ?

पहले तो तुम ऐसे ना थे, इतने कैसे बदल गए,
ये तोहमत भी हमपे लगाना, ये भी कोई बात हुई ?

इक तेरी कातिल ये अदाएं, हुश्न तेरा तौबा तौबा
और दिलों पे छुरी चलाना, ये भी कोई बात हुई ?

आज अभी जाते है, कल फिर यहीं पे मिलने आयेंगे,
वादा करके भी ना आना, ये भी कोई बात हुई ?

गर गुस्सा थे हमसे कहते, माफ़ करो हम कह देते,
अपने भैया से पिटवाना, ये भी कोई बात हुई ?

माना मौसम सर्दी का है, तापमान है गिरा हुआ,
पर हफ़्तों हफ़्तों नहीं नहाना, ये भी कोई बात हुई ?

पेट गले तक भरा हुआ, और कहते ये तो पानी है,
फिर ठूंस ठूंस कर रबड़ी खाना, ये भी कोई बात हुई ?



बकरे में में करते रहते, और घोड़ों को घास नहीं,
उसपे गधों को हलवा खिलाना, ये भी कोई बात हुई ?

छत पर बैठे ताक रहे थे सिर्फ तुम्हारी खिड़की को
हमें देख कर परदे लगाना, ये भी कोई बात हुई ?

सबसे मिलते हो खुल कर, और बातें भी करते हो
लेकिन हमसे आँख चुराना, ये भी कोई बात हुई ?

प्यार में अक्सर कभी कभी, तकरारें भी "शिव" होती है,
पर रूठे को लेना मनाना, हाँ ये कोई बात हुई ।

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Sunday 13 December 2015

जरा मुस्कुराइये - Jara Muskura De


जरा मुस्कुराइये - Jara  Jara Muskura De


Smile Please.

कंधों को थोड़ा ऊपर कीजिये, शर्ट की कॉलर सही करें, सामने देखिये, आँखें कैमरा की तरफ, हां, अब थोड़ा मुस्कुराइये, शाबाश, क्लिक ........ । बहुत अच्छी फ़ोटो आई है साहब, देखिये क्या मुस्कान है आपकी ।

फ़ोटो स्टूडियो वाले ने अपने कैमरे में मुझे अपनी फ़ोटो दिखाई, वाकई अच्छी फ़ोटो थी । मुस्कराहट ने तो फ़ोटो में जान ही डाल दी थी ।

मैंने कहीं पढ़ा था, शायद फेसबुक में किसी का स्टेटस था, "जब एक बार मुस्कुराने से फ़ोटो अच्छी आ सकती है, तो बार बार मुस्कुराने से जीवन की तस्वीर भी खूबसूरत हो सकती है ।"

सच कहा कहने वाले ने । मुस्कराहट सिर्फ आपके चेहरे को ही नहीं, आपके हर पल को, आपके पुरे जीवन को खूबसूरत बना सकती है । एक मधुर सी मुस्कान आपके कई कार्य सहज बना सकती है ।

शाम को पतिदेव काम से जब घर आते हैं और पत्नी अगर मुस्कुरा के स्वागत कर दे तो वे अपनी दिन भर की थकान और परेशानियों को पल भर में भूल जाते हैं ।




मुस्कराहट मानव को ईश्वर प्रदत्त एक ऐसा अनमोल उपहार है जिसका जितना ज्यादा आप उपयोग करेंगे उतना ही आपके लिए फायदेमंद होगा । एक छोटी सी मुस्कान कई बड़ी बड़ी समस्याओं को उत्पन्न होने से पहले ही रोक सकती है ।

जैसे कोई अगर कभी गुस्से में आपसे बात करे और अगर आप एक मीठी मुस्कान के साथ उसका उत्तर दें तो निश्चित ही परिणाम सुखद मिलता है ।

कभी ना कभी आपने भी ये किया ही होगा, अपने लिए या आपके साथ कोई था उसके लिए । आप लंबी दूरी की यात्रा कर रहे हैं और आपके पास आरक्षित टिकट नहीं है तो आप किस प्रकार होठों पर एक मुस्कान लिए टी टी से "साहब कोई सीट खाली है क्या" पूछते हैं । याद कीजिये कई बार आपकी मुस्कान जादू कर जाती थी । टी टी आपको एस 4 या एस 5 में एक सीट का आरक्षण अक्सर दे ही देता था ।



कई बार आपकी मुस्कराहट कई और लोगों की मुस्कराहट का सबब भी बन जाती है । आप अगर तनाव में रहेंगे तो घर का माहौल भी तनावपूर्ण सा बन जाता है । आपके मुस्कुराने से आपके परिवार के सदस्यों के चेहरे भी खिले खिले से रहेंगे ।

आपके माता पिता, भाई बहन, पत्नी या बच्चे ये जानकर, कि आप तनावमुक्त हैं, आपसे अपने मन की बात करेंगे । इसके विपरीत यदि वे आपके चेहरे पर परेशानी या चिंता की लकीरें देखेंगे तो कोई महत्वपूर्ण बात को भी उस वक्त टाल देंगे ।


मुस्कुराहट दवा का काम भी करती है । किसी से मुस्कुरा के हंस के बात कीजिये । सामने वाले की कई बीमारियां छु मंतर हो जायेगी । उसका दिल खुश हो जायेगा । रक्तचाप सामान्य हो जायेगा । आपके लिए अगर कुछ गलत फहमियां उसके मन में थी वो दूर हो जायेगी । सिर्फ आपके चेहरे की मुस्कराहट से ।

एक अज्ञात शायर का शेर मुझे याद आ रहा है जो इस बात पर काफी सटीक भी लग रहा है ।

" तेरे मुस्कुराने का असर सेहत पे होता है,
और लोग पूछ लेते हैं' दवा का नाम क्या है?"

इसलिए खुश रहिये । मुस्कुराइये । कभी कोई वजह हो तो मुस्कुराना है ही, पर कभी बे वजह भी मुस्कुराइये । फिर देखिये, जिंदगी कितनी हसीन हो जायेगी । बस मुस्कराहट कातिल भले ही हो कुटिल ना हो इसका ध्यान अवश्य रखें । फिर तो कभी ना कभी कोई न कोई कह ही देगा या कह देगी ।

" क़ुर्बान हो जाऊं मुस्कराहट पे तुम्हारी ?
या इसे देखकर जीने का एक बहाना ढूंढ लूँ ?"

अब थोड़ा मुस्कुराइये और आज के लिए मुझे इज़ाज़त दीजिये । कल फिर मिलेंगे, मुस्कुराते हुए ।

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जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...

Thursday 10 December 2015

चलो गीत लिखें - Chalo Geet Likhe


चलो गीत लिखें - Chalo Geet Likhe




कण कण में प्रीत लिखें
वक्त रहा है बीत लिखें
बसंत बहार की बात करें
हेमंत शिशिर और शीत लिखें
चलो गीत लिखें

बारिश की बौछार पर
झरनों की धार पर
माँ के दुलार पर
इस सूंदर संसार पर
शब्दों का संगीत लिखें
चलो गीत लिखें


ना जिसमें रुसवाई हो
ना बेदर्द जुदाई हो
जरा सा ना गुरूर हो
नफरत कोसों दूर हो
ऐसी नई रीत लिखें
चलो गीत लिखें



चाँद जैसा रूप लिखें
सर्द ऋतू की धुप लिखें
लिखें नैनों को झील, पर
जो भी लिखें खूब लिखें
उन्हें मन का मीत लिखें
चलो गीत लिखें


प्रेम में तकरार कैसी
जीत कैसी हार कैसी
जिंदगी बनायें सूंदर
दुल्हन के श्रृंगार जैसी
हार को भी जीत लिखें
चलो गीत लिखें

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जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...




Wednesday 9 December 2015

Vidai ke bhavuk pal - विदाई के भावुक पल


विदाई के भावुक पल


विनोद काफी खुश नजर आ रहा था । बैंगलोर की एक बड़ी कंपनी में उसका चयन हो गया था । अच्छी तनख्वाह, रहने को घर और आने जाने के लिए गाड़ी भी मिलेगी । और क्या चाहिए आदमी को ।

अभी तीन महीने पहले ही विनोद ने एम बी ए किया था और पहले प्रयास में ही उसे इतनी बढ़िया नोकरी मिल रही थी । घर में भी सब खुश थे ।माँ बाबूजी तो ख़ुशी से फुले नहीं समा रहे थे, आखिर बच्चे की मेहनत सफल जो हो गयी थी ।

अगले सप्ताह उसे बैंगलोर बुलाया गया था । उसके मित्र भी इस समाचार से अत्यंत खुश हुए । सब उसे बधाइयां दे रहे थे । इस माहौल में पांच छह दिन कब बीत गए पता ही नहीं चला ।

विनोद ने अपनी जरूरतों का सारा सामान अटैची में रख लिया था । आँखों में ढेरों सपने लिए जब विदा होने का वक्त हुआ तो मन कुछ उदास सा हो गया ।

ये घर, माँ, बाबूजी, दीदी भैया और भाभी सबको छोड़ के जाना पड़ेगा । उसकी आँखें थोड़ी भीग आई थी । माँ की आँखें भी नम थी । बेटा विदा जो हो रहा था । अब एक साल बाद ही आएगा, वो भी कुछ दिनों के लिए ।

मन तो नहीं कर रहा था बेटे को अपने से दूर भेजने का, मगर वहां बैंगलोर में उसका भविष्य इंतजार कर रहा था इसलिए भारी मन से सबने उसे उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ विदा किया ।

सच है, विदाई का पल होता ही इतना भावुक है । जब कोई अपना अज़ीज़ हमसे दूर जाता है तो उसके साथ बिताये पलों की यादें दिल में थोड़ी बहुत उथल पुथल तो मचा ही देती है ।

अपने माता पिता, भाई बहनो और बचपन के दोस्तों को छोड़ कर जाना पीड़ादायक तो होता है ।

विदाई चाहे बेटे की हो, बेटी की हो या किसी मित्र की । विदाई के पल सदैव भावुकता भरे ही होते हैं । जिस तरह कोई भी अपनी पहली विशेष सफलता हमें हमेशा याद रहती है, उसी तरह अपनी पहली विदाई भी कोई नहीं भूलता ।

स्कूल में अंतिम वर्ष का विदाई समारोह होता है और स्कूल छोड़कर जब कॉलेज जाने का वक्त आता है उस वक्त भी दिल स्कूल से विदा लेने को नहीं करता । इसी तरह किसी सरकारी या गैर सरकारी कर्मचारी को स्थानांतरण की वजह से नई जगह जाना पड़े, तो अपने पुराने साथियों और पुरानी जगह को छोड़ना बहुत ही कष्टदायक महसूस होता है ।

सबसे संवेदनशील विदाई होती है बेटी की । पिता के आँगन में खेलती कूदती बड़ी होकर जब सबको छोड़ अपने पति के घर के लिए विदा होती है तो वे क्षण पुरे परिवार, और खासतौर से पिता के लिए, अत्यंत भावुकता भरे होते हैं । बेटियों पर पिता का स्नेह कुछ अधिक जो होता है ।

Click here to read "बाबुल का घर -  Babul Ka Ghar," by Sri Shiv Sharma


लेकिन इस विदाई में भविष्य की बहुत सारी संभावनाएं, बहुत से सपने छुपे होते हैं । बेटा बैंगलोर, या कहीं और, सफलता की ऊंचाइयां छु रहा है । बेटी अपने ससुराल में खुश है । सारे दोस्त अच्छी जगहों पर जम चुके हैं । दिल को सुकून देने वाली ये बातें विदाई के गम को भुला देती है ।

इसलिए भले ही ये विदाई भावुकता से भरी हो, सदियों से चली आ रही है और आगे भी चलती रहेगी  । कुछ अच्छे के लिए ।

दोस्तों, अब मैं भी आज के लिए आपसे विदा लेता हुं कल फिर मिलने के लिए, जनाब मिर्जा ग़ालिब के इस शेर के साथ ।

"आये हो कल और आज ही कहते हो कि जाऊं,
माना कि हमेशा नहीं अच्छा, कोई दिन और।

जाते हुए कहते हो कयामत को मिलेंगे,
क्या खूब, कयामत का है गोया कोई दिन और।"


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जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...







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Monday 7 December 2015

शायराना अंदाज - shayarana andaz


शायराना अंदाज


देखते देखते पचास ब्लॉग लिख डाले । मैंने कभी सोचा ना था कि मैं इतना कुछ भी लिख सकता हुं । ये सब आप सबके प्रेम और स्नेह की बदौलत ही मुनासिब हो पाया ।

आगे भी ये मुहब्बत मुझपे लुटाते रहना
मैं तनहा ना हो जाऊं तुम बुलाते रहना ।

जी हां, आप सही समझे । कहां हिंदी से सीधे उर्दू के लफ्ज़ । आज मेरा मन भी कुछ गजल जैसी चीज लिखने को हो रहा है । और फिर हिंदी की मौसेरी बहन उर्दू जब साथ में मिल जाए तो अंदाज शायराना हो ही जाता है ।

बड़े बड़े शायरों की शायरी या ग़ज़ल जब हम पढ़ते सुनते हैं, तो उनका एक एक शब्द दिल में उतर जाता है । वे लोग लिखते ही हैं अपना दिल निचोड़कर । उन सबको मेरा प्रणाम ।

मैं कोई इतना बड़ा शायर तो नहीं हुं, फिर भी एक कोशिश कर रहा हुं, हिंदी उर्दू मिलाकर एक ग़ज़ल लिखने की । मैं जानता हुं, अगर ये ग़ज़ल आपको अच्छी लगेगी तो आप मेरी हौसलाआफजाई जरूर करेंगे ।

तो आपकी अदालत में अपनी लिखी ग़ज़ल पेश करने का दुस्साहस कर रहा हुं । इसमें जो भी त्रुटियां है मुझे बताएं ताकि फिर कभी अगर दिल शायराना हुआ तो उनको ना दोहराऊं ।


"जरा ठहर, सब्र कर, तत्काल ना पूछ,
ऐ जिंदगी, तू इतने सवाल ना पूछ,

जैसे भी हैं, अच्छे हैं, पसंद है मुझे
उनके बारे में मेरे ख़याल ना पूछ,

उनकी जुल्फें तौबा, अदाएं लाजवाब
कुदरत ने बनाया है, बेमिसाल ना पूछ,

खिल उठता है दिल, उनके आ जाने से
ना आने से जो होता है, वो मलाल ना पूछ,

माना की डरपोक हुं, पर ना जाने कैसे
उनको देखने की हो जाती है, मजाल ना पूछ,

कल शाम महफ़िल में चर्चे हुए उनके
फिर कितना हुआ, बवाल ना पूछ,

जाने कितने लुट गए, फंस के भंवर में
उन कजरारी आँखों का, कमाल ना पूछ,

कातिल आँखे, वो नाजुक सा बदन
इस खूबसूरती की, मिसाल ना पूछ,

वो चले गए, अचानक छोड़ कर,
कैसे बीता, वो पूरा साल ना पूछ,

पंगा ना लेना, इश्क वालों से 'शिव'
क्या क्या हो जाएगा, जंजाल ना पूछ ।

ऐ जिंदगी, तू इतने सवाल ना पूछ
जरा ठहर, सब्र कर, तत्काल ना पूछ"


अंत में फिर आप सबका तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हुं, और कल फिर मिलने के लिए आज आपसे विदा लेता हुं ।

जिंदगी के सफ़र में यारों, अंधेरे भी मिलेंगे,
बस मुहब्बत के चिरागों को जलाये रखना ।

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जय हिन्द

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Sunday 6 December 2015

Roti - रोटी


रोटी - Roti


सुबह सुबह 7 बजे फ़ोन की घंटी बजी । मैं रजाई में दुबका नींद का आनंद ले रहा था । ऐसे में फ़ोन का बजना किसी देश पर शत्रु के आक्रमण जैसा लगा ।

खैर, खीजते हुए, रजाई से हाथ निकालकर मैंने फ़ोन उठाया । मेरे एक मित्र का फ़ोन था । मेरी खीज मिट गयी जब उसने बताया कि आज वो मेरे बैंक खाते में मेरे पैसे जमा करवा रहा है । कुछ उधार ले रखे थे उसने, वही वापस कर रहा था । अब बात रोकड़े मिलने की हो तो फिर खीज कैसी । उस से बात करते करते नींद उड़ चुकी थी ।

बिस्तर छोड़कर नित्यकर्मो से निवृत हुआ और बाहर का दृश्यावलोकन करने घर की बालकनी में आ गया ।  उफ्फ्फ.... हड्डियां कम्पा  देने वाली सर्दी, और ऊपर से आग में घी का काम कर रही थी हलकी हलकी चलने वाली हवायें ।

सड़क पर नजर डाली । कुछ लोग ही दिखाई पड़ रहे थे । कोट, स्वेटर, पहने, कान और मुंह ढके हुए । सर्दी का आलम ही ऐसा था । अचनाक सामने से सब्जी का ठेला ले के आते हुए करीब 60-65 वर्षीय एक बुजुर्ग पर नजर पड़ी ।

मैं उनको पहचानता था । मगर वो ठेले पर सब्जियां क्यों बेच रहे थे, उनकी तो मंडी में दुकान हुआ करती थी जिस पर उनका बेटा भी बैठा करता था । दुकान चलती भी अच्छी थी । क्योंकि पिता पुत्र दोनों का व्यवहार अच्छा था और फल सब्जी भी उत्तम दर्जे के बेचा करते थे ।

मुझे आश्चर्य हुआ, और सब्जियां भी लेनी थी सो निचे चला गया । तब तक वो बुजुर्ग घर तक पहुँच चुके थे । " बाबूजी सब्जियां लेंगे क्या, एकदम ताज़ी ताज़ी ।" कंपकंपाती आवाज में बुजुर्ग ने पूछा ।

"हां बाबा, दे दो । लेकिन आप इस उम्र में और इतनी ठण्ड के बावजूद घर से निकल पड़े? आपका बेटा नहीं है क्या जो इस उम्र में आपको काम करना पड़ता है ? ऐसे तो आपका स्वास्थ्य भी ख़राब हो सकता है ।"

"क्या उपाय बेटा, पेट के लिए करना पड़ता है । देर से निकलूंगा तो फिर ठेले पर रखी सब्जियां ताज़ी नहीं रहेगी । कौन खरीदेगा । ये बिकती है, चार पैसे मिल जाते हैं तो मैं और मेरी पत्नी दो वक्त की रोटी खा लेते हैं ।" बाबा कहते जा रहे थे ।

"ठण्ड तो कुछ दिनों की है बेटा लेकिन भूख तो रोज लगती है । रोटी के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा ना ।"

"हां, मगर आपका बेटा" मैनें पूछा ।

दो वर्ष पहले बेटे को पता नहीं क्या बिमारी हो गयी, बहुत इलाज करवाया, उसकी दवाएं और इलाज के लिए दूकान भी गिरवी रखनी पड़ी, इसके बावजूद भी वो नहीं बच पाया ।" कहते कहते बाबा की आँखे भीग आयी ।

"बहु अपने पीहर चली गयी,  घूम घूम के सब्जी बेचता हूं तो दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो पाता है, कुछ बचता है वो ब्याज में चला जाता है, ऐसे में गिरवी रखी दूकान को छुड़वाने की तो सोच ही नहीं सकता । पचास हजार रुपये कम भी तो नहीं होते ।"

मैं सुनते सुनते लगभग चेतनाशून्य हो चूका था । लेकिन मैंने मन ही मन एक निर्णय ले लिया था । बाबा ने सब्जियां थैली में डाल कर मुझे पकड़ाई । मैंने सब्जी के पैसे उन्हें देते हुए कहा "बाबा, क्षमा कीजियेगा, मुझे पता नहीं था । आपके साथ जो हुआ सुनके मुझे बहुत दुःख हुआ ।"


"अरे नहीं बेटा, ये तो विधि का विधान है । सुबह होती है तो रात भी होती है । और हर रात के बाद सुबह भी होती ही है । कभी ना कभी तो उपरवाला कोई चमत्कार दिखायेगा ।"

"हां बाबा, लेकिन फिलहाल आप ऊपर चलिए, मेरा घर भी देख लीजिये और मेरे साथ एक गरम गरम चाय पीजिए । बहुत सर्दी है । और हां, शाम को आप यहाँ आना, आपसे कुछ काम है ।"

चाय पीकर बाबा के शरीर में एक नई स्फूर्ति आ गयी थी । अपने ठेले को धकेलते हुए वो आगे निकल पड़े । मैं बालकनी से उन्हें जाते देखते हुए सोच रहा था । शायद सुबह सुबह मित्र का फ़ोन इन बाबा के लिए ही आया था ।

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Saturday 5 December 2015

असुविधा के लिए खेद है - asuvidha ke liye khed hai, Sorry for the interruption

असुविधा के लिए खेद है - Sorry for the interruption


कल मेरे मोबाइल में इंटरनेट तो चालू हो गया था लेकिन ग्राहक सेवा केंद्र में फ़ोन करने से मेरे दिमाग में एक विचार ने जन्म ले लिया ।

आप सब जानते हैं की आज के दौर में हर क्षेत्र में तरक्की बहुत तेजी से हो रही है । आजकल घर बैठे फ़ोन से ही आप काफी काम कर सकते हैं । रेल टिकट, हवाई टिकट, सिनेमा की टिकट यहाँ तक की टैक्सी भी आप फ़ोन पर ग्राहक सेवा केंद्र में फ़ोन करके घर तक मंगवा सकते हैं ।

अभी आप अपने किराणा स्टोर वाले बाबूलाल को फ़ोन करके सामान लिखवा देते हैं, और एक आध घंटे में वो सामान घर पर पहुंचा भी देता है, लेकिन कल्पना कीजिये की उसने भी अति व्यस्तता के कारण ऐसी ही सेवा केंद्र वाली पद्धति शुरू करदी, तो क्या दृश्य होगा ।


असुविधा के लिए खेद है


मान लीजिये आपको आटा चाहिए, और आप जैसे ही अपने किराने वाले को फ़ोन करेंगे उधर से आवाज आएगी, जी हां, वो ही, मधुर सी आवाज ।

"चुलबुल किराणा स्टोर में आपका स्वागत है.... हिंदी के लिए एक दबाएं, फॉर इंग्लिश प्रेस टू, मराठी करितां तीन दाबा..... ।"

आपने हिंदी के चयन के लिए एक दबा दिया तो पहले तो उसका विज्ञापन सुनाई पड़ेगा "भूल जाओ पुराना स्टोर, याद रखो चुलबुल किराणा स्टोर........ टिंग टोंग ।"

और फिर वही मधुर आवाज । "रसोई की सामग्री के लिए एक दबाएं, खाने के लिए तैयार सामग्री के लिए दो दबाएं, सूखे मेवों के लिए तीन दबाएं, डब्बा बंद सामान के लिए चार दबाएं, पिछले मेनू में वापस जाने के लिए नो दबाएं ।"




आपने फिर एक दबा दिया और फिर वही रिकॉर्डिंग शुरू "साबुत अनाज के लिए एक दबाएं, दालों के लिए दो दबाएं, पिसे हुए आटे के लिए तीन, मसालों के लिए चार और पिछले मेनू में वापस जाने के लिए नो दबाएं।"

तब तक आपका माथा भी घूमने लग जाएगा । थोड़ी झुंझलाहट के साथ आप तीन दबाएंगे, ये सोचकर की अब तो आटे वाले प्रतिनिधि से बात हो जायेगी, मगर................ ।

"गेंहूँ के आटे के लिए एक, बाजरे के आटे के लिए दो, मकई के आटे के लिए.......... पिछले मेनू में.......।"

आप भी आधा अधूरा सुन के तुरंत एक दबा देंगे । इस उम्मीद में कि अब गेंहूँ का आटा मिल जायेगा । परंतु चुलबुल भी एकदम पुख्ता होगा तभी तो सही चीज आपके घर पहुंचेगी । उधर से फिर आवाज आएगी ।


असुविधा के लिए खेद है


"घर पे पिसे हुए आटे के लिए एक, चक्की.........." आप ने बिना सुने ही नंबर दो को चुन लिया । क्योंकि आपको चक्की का पिसा आटा चाहिए । लेकिन आप ये ना भूलें कि आप चुलबुल किराणा स्टोर में बात कर रहे हैं । ग्राहकों की पूर्ण संतुष्टि ही जिनका ध्येय है, वो आपको इतनी जल्दी अपने से जुदा थोड़ी ना होने देंगे ।

कर्णप्रिय वाणी फिर गूंजेगी "दस किलो आटे के लिए एक दबाएं, बीस किलो के लिए दो, पचास किलो के लिए तीन, इससे ज्यादा के लिए चार, कम के लिए पांच, पिछले मेनू.........।"

अब तक आप अच्छी तरह पक चुके थे । फिर भी संयम के साथ "शायद उनका आखरी हो ये सितम" की तर्ज पर आपने बीस किलो आटे के लिए दो नम्बर दबा दिया ।

"भूल जाओ पुराना स्टोर, याद रखो चुलबुल किराणा स्टोर........ टिंग टोंग ।" के विज्ञापन के बाद ग्राहक सेवा प्रतिनिधि हाजिर हुआ ।

वही व्यापार और व्यवहार सुलभ आवाज एवं अंदाज लिए।

"श्रीमान, आपका इतना वक्त लेने के लिए हम आपसे क्षमा चाहेंगे । जैसा कि मैं देख रहा हुं आपको बीस किलो आटा चाहिए, मगर श्रीमान, हमें खेद है कि पिछले दो दिन से ट्रक हड़ताल की वजह से हमारे पास का आटे का सारा स्टॉक खत्म हो गया है । पुनः आपसे एक बार क्षमा चाहेंगे । चुलबुल किराणा में फ़ोन करने के लिए धन्यवाद । आपका दिन शुभ हो । नमस्कार ।"


असुविधा के लिए खेद है


अब आपकी स्तिथि खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली हो जायेगी । और आपके कानों में अपने आप ही एक कर्कश ध्वनि सुनाई पड़ने लगेगी ।

"गुस्सा शांत करने के लिए दीवार से सर टकराएं ।ज्यादा क्रोधित हैं तो जोर जोर से चिल्लाएं । अनियंत्रित क्रोधित अवस्था में हैं तो चुलबुल किराणा तक जाएं । मन की शांति के लिए बाबूलाल के एक लगाएं । फ़ोन के कटने वाले बैलेंस की भरपाई के लिए दो लगाएं ।"

उफ्फ.... कल्पना ही अगर इतनी डरावनी है तो फिर असलियत तो क्या होगी ? आपका क्या ख्याल है दोस्तों । बताना ।

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जय हिन्द

....शिव शर्मा की कलम से....








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