Wednesday 9 December 2015

Vidai ke bhavuk pal - विदाई के भावुक पल


विदाई के भावुक पल


विनोद काफी खुश नजर आ रहा था । बैंगलोर की एक बड़ी कंपनी में उसका चयन हो गया था । अच्छी तनख्वाह, रहने को घर और आने जाने के लिए गाड़ी भी मिलेगी । और क्या चाहिए आदमी को ।

अभी तीन महीने पहले ही विनोद ने एम बी ए किया था और पहले प्रयास में ही उसे इतनी बढ़िया नोकरी मिल रही थी । घर में भी सब खुश थे ।माँ बाबूजी तो ख़ुशी से फुले नहीं समा रहे थे, आखिर बच्चे की मेहनत सफल जो हो गयी थी ।

अगले सप्ताह उसे बैंगलोर बुलाया गया था । उसके मित्र भी इस समाचार से अत्यंत खुश हुए । सब उसे बधाइयां दे रहे थे । इस माहौल में पांच छह दिन कब बीत गए पता ही नहीं चला ।

विनोद ने अपनी जरूरतों का सारा सामान अटैची में रख लिया था । आँखों में ढेरों सपने लिए जब विदा होने का वक्त हुआ तो मन कुछ उदास सा हो गया ।

ये घर, माँ, बाबूजी, दीदी भैया और भाभी सबको छोड़ के जाना पड़ेगा । उसकी आँखें थोड़ी भीग आई थी । माँ की आँखें भी नम थी । बेटा विदा जो हो रहा था । अब एक साल बाद ही आएगा, वो भी कुछ दिनों के लिए ।

मन तो नहीं कर रहा था बेटे को अपने से दूर भेजने का, मगर वहां बैंगलोर में उसका भविष्य इंतजार कर रहा था इसलिए भारी मन से सबने उसे उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ विदा किया ।

सच है, विदाई का पल होता ही इतना भावुक है । जब कोई अपना अज़ीज़ हमसे दूर जाता है तो उसके साथ बिताये पलों की यादें दिल में थोड़ी बहुत उथल पुथल तो मचा ही देती है ।

अपने माता पिता, भाई बहनो और बचपन के दोस्तों को छोड़ कर जाना पीड़ादायक तो होता है ।

विदाई चाहे बेटे की हो, बेटी की हो या किसी मित्र की । विदाई के पल सदैव भावुकता भरे ही होते हैं । जिस तरह कोई भी अपनी पहली विशेष सफलता हमें हमेशा याद रहती है, उसी तरह अपनी पहली विदाई भी कोई नहीं भूलता ।

स्कूल में अंतिम वर्ष का विदाई समारोह होता है और स्कूल छोड़कर जब कॉलेज जाने का वक्त आता है उस वक्त भी दिल स्कूल से विदा लेने को नहीं करता । इसी तरह किसी सरकारी या गैर सरकारी कर्मचारी को स्थानांतरण की वजह से नई जगह जाना पड़े, तो अपने पुराने साथियों और पुरानी जगह को छोड़ना बहुत ही कष्टदायक महसूस होता है ।

सबसे संवेदनशील विदाई होती है बेटी की । पिता के आँगन में खेलती कूदती बड़ी होकर जब सबको छोड़ अपने पति के घर के लिए विदा होती है तो वे क्षण पुरे परिवार, और खासतौर से पिता के लिए, अत्यंत भावुकता भरे होते हैं । बेटियों पर पिता का स्नेह कुछ अधिक जो होता है ।

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लेकिन इस विदाई में भविष्य की बहुत सारी संभावनाएं, बहुत से सपने छुपे होते हैं । बेटा बैंगलोर, या कहीं और, सफलता की ऊंचाइयां छु रहा है । बेटी अपने ससुराल में खुश है । सारे दोस्त अच्छी जगहों पर जम चुके हैं । दिल को सुकून देने वाली ये बातें विदाई के गम को भुला देती है ।

इसलिए भले ही ये विदाई भावुकता से भरी हो, सदियों से चली आ रही है और आगे भी चलती रहेगी  । कुछ अच्छे के लिए ।

दोस्तों, अब मैं भी आज के लिए आपसे विदा लेता हुं कल फिर मिलने के लिए, जनाब मिर्जा ग़ालिब के इस शेर के साथ ।

"आये हो कल और आज ही कहते हो कि जाऊं,
माना कि हमेशा नहीं अच्छा, कोई दिन और।

जाते हुए कहते हो कयामत को मिलेंगे,
क्या खूब, कयामत का है गोया कोई दिन और।"


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जय हिन्द

...शिव शर्मा की कलम से...







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