Saturday 26 March 2016

Bigadi Baat Bane Nahi

बिगड़ी बात बने नहीं


गली से उठते शोर की आवाजें सुनकर मुरली बाबू कारण जानने अपने घर से बाहर आये । उनके दो पड़ोसियों किशन और मनोहर में किसी बात को लेकर तू तू मैं मैं हो रही थी जो अब तक थोड़ा विकराल रूप ले चुकी थी । अन्य पड़ोसी उन्हें समझा बुझाकर शांत करने का प्रयास कर रहे थे । मुरली बाबू को देखकर दोनों थोड़ा चुप हुए ।

मोहल्ले में सब मुरली बाबू का बहुत आदर करते थे । वे वहां सबसे उम्रदराज और समाजसेवी व्यक्ति थे । पिछले वर्ष ही प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत होकर समाज कल्याण के कार्यों में लग गए थे । गुरूजी के नाम से प्रसिद्द मृदुभाषी और मिलनसार मुरली बाबू के व्यक्तिव में भी कुछ खास बात भी थी कि हर कोई उनकी बात को ध्यान से सुनता और उस पर अमल भी करने का प्रयास करता था ।

"क्या बात है किशन, मनोहर, क्यों झगड़ रहे हो ।" मुरली बाबू ने दोनों की और मुखातिब होकर पूछा ।

"देखिये ना गुरूजी, मनोहर का लड़का बंटी कितना शैतान है, रोज मेरी साईकिल की हवा निकाल देता है ।" किशन ने जवाब दिया और शिकायत जारी रखी ।

"आज मैंने उसे जब रंगे हाथों पकड़ लिया और मनोहर से शिकायत की तो ये कहता है कि बच्चे हैं, बच्चे शैतानियां नहीं करेंगे तो कौन करेगा ।"

"हां तो सही ही तो कहा है मनोहर ने" गुरूजी ने मुस्कुराकर कहा । "बच्चे चंचल नहीं होंगे, शरारतें, शैतानी नहीं करेंगे तो फिर क्या बच्चे । भूल गए, बचपन में तुम और ये मनोहर भी, मेरी साईकिल की हवा निकाल दिया करते थे, वर्माजी की डोर बेल बजाकर भाग जाया करते थे । हमने तो कभी तुम लोग के पिताजी से शिकायत नहीं की, उल्टे हम तो तुम और अन्य बच्चों की शरारतों का आनंद लिया करते थे । और आज तुम ही इतनी सी बात का इतना बड़ा बतंगड़ बना रहे हो ।"

शायद किशन और मनोहर भी उन बातों को याद करके अपनी भूल समझ चुके थे, किशन ने मनोहर, गुरूजी और अन्य लोगों से क्षमा मांगी और मनोहर से गले मिलकर सारे शिकवे दूर किये । कितनी सहजता से गुरूजी ने मामला सुलझा दिया था ।

दोस्तों ये तो एक कहानी थी । लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि कई बार हम भी इसी तरह की छोटी छोटी और बे सिर पैर की बातों को लेकर अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों से अनबन कर बैठते हैं, उन्हें खरी खोटी सुना देते हैं और रिश्तों में खटास पैदा कर लेते हैं । नतीजा ये होता है कि संबंधों में कड़वाहट और दूरियां बढ़ती जाती है ।

बाद में वही स्तिथि, वही घटना जब हमारे साथ घटित होती है तब हमें पछतावा होता है । हम शर्मिंदा भी होते है, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है । क्योंकि कहते हैं ना कि गोली का घाव समय के साथ भर जाता है मगर बोली का घाव नहीं भरता ।

कई छोटे छोटे वाकये ऐसे होते हैं जिन्हें हम बेवजह ही तूल दे देते हैं, कई लोगों की तो जैसे आदत ही होती है शिकायतें करने की । उस तरह के लोग अक्सर अकेले हो जाया करते हैं ।

हमें चाहिए कि जीवन में होने वाली बहुत सी इस तरह की छोटी छोटी बातों को दिलोदिमाग में जगह ही ना दें । जैसे कोई अगर आपको अपने घर के किसी उत्सव में बुलाना भूल गया तो उसे उलाहना देने की मेरे विचार से कोई जरुरत नहीं होती । हो सकता है उसके उस काम में आपको शामिल करना जरुरी ही नहीं था या वो भागदौड़ में सच में आपको बुलाना भूल गया हो ।

अब अगर वो भूल गया था, तो यकीन मानिए, उसके मन में भी अवश्य ही इस बात का मलाल रहेगा और एक दिन वो खुद ही आपसे क्षमा मांग लेगा । परंतु उस से पहले अगर आपने उसे इस बात के लिए ताना दे दिया तो बात और सम्बन्ध दोनों बिगड़ भी सकते हैं एवं आप एक मित्र एक बेतुकी सी बात के लिए खो सकते हैं ।

उपरोक्त उदहारण जैसी ही कई और बातें भी जिंदगी में होती रहती है, मगर समझदारी इसी में है की हम व्यक्ति को महत्व दें बजाय इस तरह की बात बिगाड़ने वाली बातों के । क्योंकि बिगड़ी बात फिर बननी मुश्किल हो जाती है । जैसे रहीम जी ने भी कहा था,

"बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगड़े दूध को, मथे न माखन होय॥"


इन्ही विचारों के साथ आज आप सबसे विदा चाहूंगा । अपना और अपनों का ख्याल रखें । फिर मिलते हैं ।

जय हिन्द

*** शिव शर्मा की कलम से ***







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