Tuesday 26 July 2016

Maa To Maa Hoti Hai

माँ तो माँ होती है

संसार का सबसे पवित्र, निस्वार्थ और निश्छल रिश्ता होता है माँ और उसकी संतान का ।

संतान भले ही भविष्य में माँ की अनदेखी करने लगे, परंतु एक माँ तो जीवन पर्यंत अपनी औलाद के लिए सदैव उसकी खुशहाली की कामना ही करती रहती है । क्योंकि "माँ तो माँ होती है"।

एक कविता के जरिये, त्याग की मूर्ति, "माँ" की ममता के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूं, इस आशा के साथ की "माँ तो माँ होती है" को भी आप मेरे पहले के ब्लॉग "माँ एक पूरी दुनिया" की तरह ही पसंद करेंगे ।




माँ तो माँ होती है

सूरज उगने से पहले उठ जाती है,
सारे घर को चमकाती है,
नहाकर पूजा करती है,
सबका खयाल रखती है,
जल्दी जल्दी हाथ चलाती है,
पता नहीं इतनी ऊर्जा
कहाँ से लाती है,
पूरा घर संभालती है,
उठती है सबसे पहले,
सबके बाद सोती है,
क्योंकि, माँ तो माँ होती है,

सबका नाश्ता बनाकर
बच्चों को जगाती है,
मिन्नतें कर कर के
उन्हें प्यार से खिलाती है,
मेरे लाल को नजर ना लग जाए
कहकर काला टीका लगाती है,
उन्हें तैयार कर के,
स्कूल बस तक छोड़ के आती है,
सौ सौ बलैयां लेती है,
बच्चों के लिए अपनी आँखों में,
कितने सपने संजोती है,
माँ तो माँ होती है,





वापस आकर पापा को जगाती है
उनका दोपहर का खाना बनाती है,
पापा के साथ खुद भी दो घूंट पीती
उन्हें भी चाय पिलाती है,
स्कूल से बच्चों के आने पर
कितने लाड लडाती है,
टिफिन में बची रोटी देख
डांट लगाती है,
झूठमूठ का गुस्सा दिखाती है,
बच्चों से गलती होने पर,
पहले तो डांटती है, फिर रोती है,
माँ तो माँ होती है,

बड़े होने तक दुनिया का
हर पाठ पढ़ाती है,
ऊंच नीच समझाती है,
दुनियादारी सिखाती है,
जीवन में आगे बढ़ने के
अनगिनत मन्त्र बताती है,
इसी वजह से माँ
पहला गुरु कहलाती है,
अपने बच्चों के हृदय में,
संस्कारों के बीज बोती है,
माँ तो माँ होती है,

कुछ बच्चे बड़े हो कर
उसी माँ को भूल जाते हैं,
सिर्फ मतलब हो
तो ही पास आते हैं
छोटी छोटी बात पर
सैंकड़ों ताने सुनाते हैं
जमाना बदल गया है
उसी माँ को बताते है
जिस ने उन पर ममता लुटाई
उसी को सताते हैं,




पर माँ तो हर हाल में
औलाद की ख़ुशी देख महकती है,
सब सहकर भी
माँ के लबों से औलाद के लिए
दुआ ही निकलती है,

संतान जैसी भी हो,
माँ के लिए तो वो
अनमोल मोती है,
उसके हृदय की धड़कन है,
उसकी आँखों की ज्योति है,



क्योंकि
माँ तो माँ होती है,
माँ तो माँ होती है ।।

   *   *   *

अंत में संसार की सभी माताओं को प्रणाम करता हुं और आप सबसे अगली मुलाकात तक के लिए विदा लेता हुं । आप सब अपना और अपनों का ख़याल रखियेगा ।

Click here to read बेटियां written by Sri Shiv Sharma

जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से***








आपको मेरी ये रचना कैसी लगी दोस्तों । मैं आपको भी आमंत्रित करता हुं कि अगर आपके पास भी कोई आपकी अपनी स्वरचित कहानी, कविता, ग़ज़ल या निजी अनुभवों पर आधारित रचनायें हो तो हमें भेजें । हम उसे हमारे इस पेज पर सहर्ष प्रकाशित करेंगे ।.  Email : onlineprds@gmail.com

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Wednesday 20 July 2016

Jeevan Mrityu - जीवन मृत्यु

जीवन मृत्यु

किस बात का नाज करे इंसां, किस दम पर तू इतराता है,
ऊपर नीली छतरी वाला, सबको नाच नचाता है,

कल का नहीं ठिकाना तेरा, बात करे सौ सालों की
बून्द बून्द जीवन रिसता, और घड़ा रीतता जाता है,

बड़े बड़े राजे महाराजे, आये आकर चले गए,
सदियों की सच्चाई है ये, जो आया वो जाता है,


जीवन मृत्यु


अपनी ताकत के मद में, जो जुल्म करे कमजोरों पर,
औंधे मुंह गिरता है एक दिन, पग पग ठोकर खाता है,

बचपन गया जवानी आई, उड़ने लगा हवाओं में,
भूल गया इसके आगे, निष्ठुर बुढ़ापा आता है,

कितना कुटिल तू कितना कपटी, सबको ठगता रहता है,
झूठे झूठे वादे करता, झूठी कसमें खाता है,




दौलत शोहरत जब सिर चढ़ती, कुछ भी नजर नहीं आता,
जिस रब ने ये दिया सभी कुछ, भूल उसे भी जाता है,


जीवन मृत्यु


मेरा मेरा करते करते, उम्र गुजरती जाती है,
झोली भर माया जोड़ी पर, धेला साथ ना जाता है,

कितनी खरी है सदियों पहले, पुरखों ने जो बात कही,
मुट्ठी बाँध के आने वाला, हाथ पसारे जाता है,




सबको आँख दिखाता रहता, गर्व भरा है बातो में,
सारी उम्र जो रहे अकड़ता, अंत समय पछताता है,

इसीलिए कहता हूं प्यारे अब भी वक्त है संभल जरा,
दया धर्म के काज करो एक साथ ये ही तो जाता है,

मानव जीवन बड़ा कीमती, व्यर्थ इसे तू मत खोना,
भला आदमी मरकर भी, दिल में जिन्दा रह जाता है ।।



जीवन मृत्यु

*    *    *    *

Click here to read बाबुल का घर written by Sri Shiv Sharma



जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से***









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Thursday 14 July 2016

Parivar - परिवार

परिवार - Parivar

आप सभी का हृदय से आभार मित्रों जो आपने "पहले तो तुम ऐसे ना थे" को इतना सराहा । इसी तरह अपना स्नेह देते रहें, मैं कोशिश करता रहुंगा और अच्छा लिखने की ।


आज आपकी अदालत में एक और कविता ले कर आया हुं, परिवार ।

आप सभी जानते हैं की बहुत पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे । समय के साथ परिवार बिखरते चले गए । इसी पुराने और आज के समय की बदली हुई पारिवारिक स्तिथियों को एक कविता के रूप में आपके सामने लाया हूँ ।

आशा है इसे भी आप "पहले तो तुम ऐसे ना थे" की तरह ही पसंद करेंगे और अपना भरपूर स्नेह लुटाएंगे ।

परिवार

दादा परदादा के वक्त में घर, घर जैसा होता था,
सब हिलमिल कर रहते थे, हर कोई चैन से सोता था,

रूखी सुखी जो मिलती, सब साथ बैठ कर खाते थे,
हर उत्सव त्योंहार साथ में, मिलजुल सभी मनाते थे,

खेत में जो कुछ हो जाता सब, उसमें ही खुश रहते थे,
सर्दी गर्मी हो तूफां हो, साथ साथ सब सहते थे,

एक दूजे के लिए समर्पण, श्रद्धा दिल में रहती थी,
सेवा आदर भरा पूरा था, प्रेम की गंगा बहती थी,



परिवार


वक्त ने ऐसी करवट बदली, उलट पलट सब कर डाला,
सब अपने तक सिमित हो गए, स्वार्थ मनों में भर डाला,

भाई भाई के मसले अब, अदालतों में जाते हैं,
पिता पुत्र भी एक दूजे से, कितने राज छुपाते हैं,

रिश्तों के परकोटे बने, कच्ची माटी से लगते हैं,
भाईदूज रक्षा बंधन, बस परिपाटी से लगते हैं,

कई कई वर्षों तक हम, आपस में मिल ना पाते हैं,
पत्ते जाते सूख प्रेम के, उपवन खिल ना पाते हैं,

भाग रहे सब दौड़ रहे, अपने ही सपनों के पीछे,
हौड़ में भैया लगे हुए, अपने ही अपनों के पीछे,






परिवार


माया की माया अलबेली, सारे इसमें झूल गए,
मैं मेरा के चक्कर में, सब रिश्ते नाते भूल गए,

संस्कारों की बातें सारी, सोच पुरानी लगती है,
श्रवण कुमार की कावड़ गाथा, महज कहानी लगती है,

प्रतिस्पर्धा की दौड़ में सूखी, कितनी दिवाली जाएगी,
पूरा परिवार मनाएं संग में, वो होली कब आएगी,

प्रेम पुराना फिर लौट आये, क्या ऐसा हो सकता है,
सारे मिल प्रयास करें तो, हां ऐसा हो सकता है,

एक दूजे में अटकी हरदम, एक दूजे की जान रहे,
एक दूजे की फिक्र रहे, मन में आदर सम्मान रहे,

मतभेद अगर हो कोई भी, सब साथ बैठकर सुलझाएं,
अपने घर की बातें, घर के बाहर जाने ना पाये,

मांग समय की है, घर से बाहर भी जाना पड़ता है,
जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गई, धन भी कमाना पड़ता है,



परिवार


घर से दूर भी जाओ तो, संस्कार साथ में ले जाना,
दिल में बसाकर अपना तुम, परिवार साथ में ले जाना,

ईर्ष्या वाले बादल, मन के आसमान पर ना छाये,
अपने कारण आँख में आंसू, किसी के आने ना पाये,

बहु सास का अपनी माता, जैसा ही सम्मान रखे,
सास बहू को बेटी समझे और बेटी सा ध्यान रखे,

ननद भौजाई घुल जाए ऐसे, जैसे सखी पुरानी हो,
ससुर पिता जैसा हो, बहनों सी देवरानी जेठानी हो,

तकलीफों के पर्वत को, कोई एक अकेला ना ढोये,
चोट अगर जो लगे एक को, पीर दूसरे को होये,

राम लखन से भाई हो, बहनें स्नेह की मूरत हो,
बस ऐसा हो एक दूजे को, एक दूजे की जरूरत हो,

सच कहता हुं "शिव" जिस दिन, सच ये सपना हो जाएगा,
स्वर्ग से सुन्दर सपनों से प्यारा, घर अपना हो जाएगा ।।

        *    *    **

अपने विचारों से अवगत जरूर कराएं ।


Click here to read जीवन की सुगंध by Sri Shiv Sharma


जय हिंद

*शिव शर्मा की कलम से***










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Thursday 7 July 2016

Pehle to Tum Aise Na The

पहले तो तुम ऐसे ना थे-Pehle to Tum aise na the


नमस्कार मित्रों, शायद सब जानते हैं कि विवाह के कुछ वर्षों के उपरांत अक्सर पत्नियों को लगने लगता है कि उनके पति कुछ बदल गए हैं, उन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं, और इस बारे में वे अक्सर अपने पति से शिकायतें भी करती रहती है ।

पति भी ज्यादातर मामलों में बात को हंसकर टाल देते हैं या इशारों इशारों में इस "बदल जाने" की वजह बताने की कोशिश करते हैं । पत्नियों की इन्ही शिकायतों और पति द्वारा दिए गए खूबसूरत जवाब को एक कविता के जरिये दर्शाने का प्रयास कर रहा हुं । अच्छी लगे तो हौसला बढ़ाना दोस्तों।



पहले तो तुम ऐसे ना थे


बेमतलब ही चिल्लाते हो, पहले तो तुम ऐसे ना थे
बात बात पर झल्लाते हो, पहले तो तुम ऐसे ना थे,

वक्त नहीं है बहुत व्यस्त हुं, ऐसा कुछ कहते ना थे,
बिना मिले मुझसे एक दिन भी, पहले तुम रहते ना थे,

घंटों मेरे साथ बैठकर चाँद निहारा करते थे,
ख्वाबों में भी अक्सर मेरा नाम पुकारा करते थे,

सागर की लहरों में मेरी जुल्फ दिखाई देती थी,
हवा में तुमको पायल की झनकार सुनाई देती थी,

डूब के मेरी आँखों में तुम नगमे गाया करते थे,
देख अदाएं मेरी तुम शायर बन जाया करते थे,

पहले तो तुम ऐसे ना थे


इन कजरारी आँखों में गोते भी लगाया करते थे,
बादल जैसी जुल्फों में उंगलियां फिराया करते थे,

शादी के बाद कई दिन तक, मुझे जानम जानू कहते थे,
दफ्तर में कम और हमेशा घर पर ज्यादा रहते थे,

बंटी बबली के संग थोड़ा, वक्त बिताया करते थे,
अक्सर उनका होम वर्क भी तुम करवाया करते थे,




बीते वक्त में ना जाने क्यूं, प्यार तुम्हारा बदल गया है,
बस उखड़े से रहते हो, व्यवहार तुम्हारा बदल गया है,

शाम को जब घर पर आते हो, परेशान से रहते हो,
पूछती हुं तो "कुछ नहीं" कह कर बात टालते रहते हो,


पहले तो तुम ऐसे ना थे


छोटी छोटी सी बातों पर, ताने मारते रहते हो,
गुस्सा हरदम नाक पे रहता, अक्सर लड़ते रहते हो,

बस बातों में बहलाते हो,
बैठे बैठे खो जाते हो,
बातें कई गुल कर जाते हो,
पहले तो तुम ऐसे ना थे,



सुनकर बातें पत्नी की पतिदेव जरा से मुस्काये,
उठकर कुर्सी से फिर अपनी प्रियतमा के पास आये,

हाथ पकड़ कर हाथ में बोले तुम भी कितनी पगली हो,
मैं अब भी सावन तेरा, तुम इस सावन की बदली हो,

तुम ही परछाई मेरी, तुम ही तो मेरी ताकत हो,
जिसे देख मुझे भी मिल जाती, तुम वो मेरी हिम्मत हो,


पहले तो तुम ऐसे ना थे


जिम्मेदारी के चलते ये संसार जरा सा बदल गया है,
प्यार वही है हां लेकिन व्यवहार जरा सा बदल गया है,

तुमसे नहीं, परिवार की खातिर वक्त से लड़ता रहता हुं,
इस जालिम दुनिया से हरदम जंग सी करता रहता हुं,

सबको हर वो सुख दे पाऊं जो मैंने ना पाये थे,
अपने बच्चे ना खाये, जो धक्के मैंने खाये थे,

इसीलिए बस थोड़ा सा चिंतन में डूबा रहता हुं,
उखड़ा उखड़ा नहीं प्रिये बस, खोया खोया रहता हुं,

वक्त के तूफानों में रुख, थोड़े बरसात के बदल गए हैं,
ना तुम बदली ना मैं बदला, बस हालात बदल गए हैं ।।
          *    *    *

मित्रों, मेरा ये प्रयास कैसा रहा, आपको ये कविता कितनी पसंद आई, अपने कमेंट जरूर दें ।

पहले तो तुम ऐसे ना थे



जय हिन्द
*शिव शर्मा की कलम से***









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Sunday 3 July 2016

Asardar - असरदार

असरदार


खुल के जिओ तो जिंदगी मजेदार बहुत है,
दुनिया एक रंगमंच है और कलाकार बहुत है,

तरह तरह के शख्स यहां अलग अलग मिजाज है,
बेपरवाह लापरवाह कई तो कई खबरदार बहुत है,

काम धाम कुछ करते नहीं मगर खर्चे ठाठ के हैं,
कुछ लोग कहते हैं ये ईमानदार बहुत है,

हर गली हर नुक्कड़ पे हुजूर के ही चर्चे हैं,
हर घड़ी खबरों में रहते है, होशियार बहुत है,

सुबह की सैर के हमें वो बताते हैं फायदे
क्या हुआ जो खुद वे वजनदार बहुत है,

वे रोज सुबह ठहाकों से गुंजा देते हैं आसमान,
हंसने वाली दवा वाकई असरदार बहुत है,

ऐसा वैसा काम आखिर वे करे तो क्यूं करे,
पढ़े लिखे भी हैं साथ ही खुद्दार बहुत है,

ढूंढते रहते हैं अखबारों के पन्नों पे नौकरी
देश के हर शहर में बेरोजगार बहुत है,

लगता है कोई सुंदरी उस घर में रहती है,
जिसकी एक झलक के तलबगार बहुत है,

मजमा सा लगा रहता है यहां सुबह से शाम तक,
अनार महज एक है लेकिन बीमार बहुत है,



चाकू छुरी तलवार की जरुरत ही क्या है,
दिल चीरने को बस जुबान की धार बहुत है,

आज फिर भिड़ गए दो पडौसी किसी बात पर,
कहने को मुहल्ले के लोगों में प्यार बहुत है,

कोयले की कलम की जो कला देखी दीवारों पर,
लगा यहां बेहूदे ही सही मगर चित्रकार बहुत है,

उम्र के साथ बुजुर्गों की सीख बोझ लगती है,
हमें ये लगता है कि हम समझदार बहुत है,

उनकी इनायतों को मगर भुला ना देना "शिव"
माँ बाप के हम सब पर उपकार बहुत है ।।

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जय हिन्द

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