Saturday 20 August 2016

दूसरा मौका (भाग-१)- Doosra Mauka (Part - 1)


दूसरा मौका - Doosara Mauka 

(भाग-)


शाम के सात बजने वाले थे । पारीक जी कंप्यूटर पर किसी व्यापारी का हिसाब बनाने में मशगूल थे तभी उनके बॉस मलिक साहब उनकी टेबल के पास आये और बोले ।

"पारीक जी, इन दिनों काम थोड़ा बढ़ गया है इसलिए आप शाम को थोड़ा ज्यादा देर रुक कर काम को सलटाने की चेष्टा करें । और सुबह भी थोड़ा और जल्दी आने की कोशिश करें ।" मलिक साहब ने लगभग आज्ञा देने वाले अंदाज में अपने अकाउंटेंट पारीक जी से गुजारिश की ।


दूसरा मौका


पारीक जी की इच्छा तो हुई की कह दे रात को भी घर जा के क्या करूंगा, यहीं बैठा काम करता रहूं, मगर उन्होंने शालीनता से जवाब दिया, "हां जी सर, काम तो बढ़ गया है, परंतु आप तो जानते ही हैं कि अभी बच्चों की परीक्षाएं भी चल रही है, उनको भी थोड़ा पढ़ाना पड़ता है । ट्यूशन रख नहीं सकता क्योंकि उनकी फीस मेरे बुते से बाहर है, मेरी तनख्वाह इतनी तो है नहीं कि मैं उन्हें ट्यूशन दिलवा सकुं, और ओवर टाइम का तो अपने यहां रिवाज ही नहीं है ।"

पारीक जी ने एक तीर से दो निशाने साध दिए । प्रत्यक्ष रूप से मना भी नहीं किया और अप्रत्यक्ष रूप में अपनी बात भी कह डाली ।

मलिक साहब ठहरे पुरे व्यापारी, तुरंत उनकी समझ में बात आ गई, थोड़ा सा खांस कर गला साफ़ किया और व्यापारी सुलभ अंदाज में बोले, "आपको क्या लगता है कि मुझे अपने स्टाफ का ध्यान नहीं है, अरे पारीक जी, इस बार के इंक्रीमेंट में आप ही तो मेरी सुचि में सबसे ऊपर हैं, आप ने सोचा ही नहीं होगा कि आपको इस बार कितना इंक्रीमेंट मिलने वाला है ।"

अच्छे पढ़े लिखे पारीक जी पिछले छह वर्षों से मलिक साहब के यहां काम कर रहे थे और ऑफिस का लगभग सारा काम देख लिया करते थे । काम के मुकाबले उनकी तनख्वाह कम थी ये बात वे भी जानते थे और मलिक साहब भी । किसी नामी कंपनी में होते तो यहां से काफी ज्यादा मेहनताना मिलता ।


दूसरा मौका


परंतु मलिक साहब ये भी जानते थे कि पारीक जी किसी तरह का जोखिम उठाने से बड़ा घबराते हैं, ये नोकरी बदलने के बारे में शायद ही कभी सोचेंगे, इसीलिए वे पारीक जी को इतनी ही तनख्वाह देते थे जिस से उनका महीने का राशन पानी चलता रहे ।

पारीक जी को लगा शायद तीर सही निशाने पर लग गया । बात को पुख्ता करने के लिए उन्होंने कहा , "ये आश्वाशन तो आपने पिछले वर्ष भी दिया था सर लेकिन दिया कुछ ख़ास नहीं था । खर्चे दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं सर ।"

पारीक जी ने अपना दुखड़ा सुनाया तो मलिक साहब मुस्कुराये और पारीक जी के कंधे पर हाथ रख कर कहा ।

"पिछले वर्ष कितनी मंदी थी ये आपसे भी नहीं छुपा है पारीक जी, फिर भी मैंने "आपको" इंक्रीमेंट दिया था ।" आपको पर विशेष जोर देकर उन्होंने कहा ।


"लेकिन इस बार देखना आपको यकीन ही नहीं होगा कि मैंने आपके लिए क्या सोच रखा है, बस आप इसी तरह दिल लगा कर काम करते रहिए ।" मलिक साहब बातों में शहद मिश्री घोल कर बोल रहे थे ।
"आखिर इस ऑफिस में आप ही तो मेरे सबसे खास आदमी है, आप हैं तभी तो मुझे पीछे से यहां की कोई चिंता नहीं रहती है, आप तो मेरे पारिवारिक सदस्य जैसे हो गए हैं, चिंता मत कीजिये, मुझे आपका ख्याल है, अभी मैं चलता हूं आप वो कानपुर वाले व्यापारी का हिसाब उनको मेल कर देना ।" और पारीक जी के कंधे को थपथपा कर वे ऑफिस से निकल गए ।

पारीक जी मन ही मन खुश हो गए और अगले महीने होने वाले इंक्रीमेंट के सपने देखने लग गए ।


दूसरा मौका


'पिछली बार आठ हजार रूपयों की बढ़ोतरी की उम्मीद थी लेकिन बढे तीन हजार ही थे । खर्च मगर उसके मुकाबले ज्यादा बढ़ गया था । मलिक साहब इस बार मेरे काम से खुश हैं और बाजार में तेजी भी है, अबकी बार शायद दस हजार तक बढ़ा देंगे । आखिर महंगाई और जिम्मेदारियां भी तो बढ़ गई है ।'

पारीक जी खयाली पुलाव पका रहे थे तभी फ़ोन की घंटी से उनकी तन्द्रा भांग हो गई । कानपूर वाली पार्टी का फ़ोन था । हिसाब के लिए पूछ रहे थे । पारीक जी ने फ़ोन रख कर उनको मेल की और ऑफिस बंद करके घर की तरफ चल पड़े ।

रास्ते में सोचते जा रहे थे दस हजार बढ़ जाए तो कितनी मुश्किलें हल हो सकती है । बहुत सी जिन वस्तुओं के लिए वे अभी मोहताज है वे भी प्राप्त हो सकती है । मलिक साहब बढ़ा देंगे इस बार । वे अपने आपको मन ही मन तसल्ली भी दे रहे थे ।

प्रायः हर नोकरी पेशा व्यक्ति ये ही सोचता रहता है, इसी तरह के ख्वाब देखता रहता है, परंतु काबिल होते हुए भी एक अनजाने ख़ौफ़ "पता नहीं क्या होगा" की वजह से उन सबसे वंचित रह जाते है जिन को पाने के वे अधिकारी होते हैं ।

कुछ लोग जो होशियार होते हैं वे किसी एक खूंटे से बंधे ना रहकर मौके तलाशते रहते हैं और मौका मिलते ही उसको भुना भी लेते हैं । कभी कभी कुछ लोगों का निर्णय गलत भी हो सकता है पर वे जल्दी ही कोई न कोई और मौका ढूंढ ही लेते हैं । वे जानते है कि यदि सफल होना है तो सबसे पहले खुद पर भरोसा करना जरुरी है । क्योंकि ये कहावत भी एक कटु सत्य है कि दुनिया को जब तक तुमसे काम है तब तक तेरा नाम है, वर्ना दूर से सलाम है ।


दूसरा मौका


....क्षमा चाहूंगा मित्रों, कहानी थोड़ी बड़ी हो रही है अतः इसे हम दो भागों में प्रस्तुत करेंगे । उम्मीद है आप नाराज नहीं होंगे । दूसरा भाग कल आपके लिए उपलब्ध रहेगा ।....



धन्यवाद, जय हिंद




*शिव शर्मा की कलम से***






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